सांसदों का वेतन 4 गुना जबकि मजदूरों का न्यूनतम वेतन 1 रु.बढ़ाने से इंकार

Blog: देश के संसद में वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली साहब ने गुरुवार को साल का आम बजट 2018-19 पेश किया. इस बजट के बारे में लोगों की अलग-अलग प्रतिक्रियाएं हैं. कुछ लोग इसको सही तो कुछ लोग गरीब विरोधी बता कर जगह-जगह प्रदर्शन भी कर रहे हैं. श्री जेटली साहब ने लोकसभा में बजट के दौरान माननीय राष्‍ट्रपति, उपराष्‍ट्रपति, राज्‍यपालों और सांसदों का वेतन बढ़ाने का ऐलान किया. जबकि मजदूरों का न्यूनतम वेतन 1 रु.बढ़ाने से इंकार हैं.

सांसदों का वेतन 4 गुना जबकि मजदूरों का न्यूनतम वेतन

इसके साथ ही उन्‍होंने इस लोगों के वेतन में हर पांच साल में मंहगाई के अनुसार रिवीजन करने की बात भी कही. जानकारी के लिए बता दें कि पिछले कई वर्षों से सांसद अपने वेतन, भत्ते आदि बढ़ाने की मांग संसद में उठाते रहें हैं. इनसभी बातों का ख्याल रखते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि राष्ट्रपति का वेतन बढाकर 5 लाख रुपये, उपराष्ट्रपति का 4 लाख रुपये और राज्यों के राज्यपालों का वेतन बढ़ाकर 3.5 लाख रुपये किया जाएगा. इसके साथ ही हर 5 साल में महंगाई दर के आधार पर सांसदों के वेतन में भी बढ़ोतरी की जाएगी. जबकि मजदूरों का न्यूनतम वेतन 1 रु.बढ़ाने से इंकार किया.

वर्तमान में सांसदों का वेतनमान क्या है?

अब यह भी जान लेते हैं कि अभी तक इनलोगों का वेतनमान अभी तक क्या है? अभी वर्तमान में राष्‍ट्रपति को हर महीने 1.5 लाख रुपये, उपराष्‍ट्रपति को 1.25 लाख रुपये और राज्‍यों के राज्‍यपालों को 1 लाख 10 हजार रुपये की सैलरी म‍िलती है. वहीं 1 जनवरी 2016 में लागू हुए सातवें पे कमीशन के बाद से कैबिनेट सेक्रेटरी को हर महीने ढाई लाख रुपये जबकि केंद्रीय सचिव को 2 लाख 25 हजार रुपये का वेतन म‍िलता है. एक तरह से देखें तो इस सभी लोगों का वेतन आदि 4 गुना तक बढ़ा दिया गया है
खैर सरकार का ही अधिकार है कि वो कानून बनाये और उसको संसद में पास करे. हमारे वोट से चुनकर जाने वाले सांसद के लिए इतनी मंहगाई बढ़ गई कि सैलरी 4 गुना करना पड़ा. जबकि इनको पहले से ही लाखों रूपये सैलरी के आलावा कई लाख रूपये सुविधा आदि में खर्च होते हैं. तब भी ये जनता के सेवक कहलाते हैं. अब जनता मालिक के हाल पर चर्चा कर लें.

केंद्र सरकार ने मजदूरों का न्यूनतम वेतन 1 रुपया भी बढ़ाने से इंकार

इस सरकार के दूसरे पहलु को भी देखते हैं. इसी केंद्र सरकार ने अक्टूबर 2017 में मंहगाई घटने का हवाला देकर मजदूरों का न्यूनतम वेतन का मंहगाई भत्ता 1 रुपया भी बढ़ाने से इंकार कर दिया था. मोदी सरकार के लेबर मिनिस्ट्री ने दिनांक 6 अक्टूबर 2017 को नोटिफिकेशन जारी कर कहा कि “जनवरी 2017 से जून 2017 तक औसत उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में कमी के कारण डीए में बढ़ोतरी नहीं किया गया है. जिसके फलस्वरूप डीए 1 अक्टूबर 2017 से 31 मार्च 2018 तक वही रहेगा जो कि 1 अप्रैल 2017 से 30 सितम्बर 2017 को था”

इस वेतन वृद्धि के खिलाफ न तो किसी सांसद का बयान आया और न इस्तीफा

अब समझने की बात है कि भारत के संविधान के अनुसार एक आम आदमी से लेकर एक सांसद को समान अधिकार प्राप्त है. एक को जीने लायक वेतन न्यूनतम वेतन तक नहीं मिल पाता तो दूसरे की भूख लाखों रूपये में नहीं मिटती है. जानकारी के लिए बता दें कि बाजार के मंहगाई के अनुसार केंद्र व् राज्य सरकारें वर्ष में दो बार मंहगाई भत्ता बढाती है.
एक बार अप्रैल और दूसरे बार अक्टूबर महीने में मंहगाई भत्ता में बढ़ोतरी किया जाता है. इसका इंतजार लगभग हर वर्कर को बड़े ही सिद्दत से होता है. दुःख तो इस बात का है कि अभी तक सांसदों के इस वेतन वृद्धि के खिलाफ मजदूरों के हितैसी समझे जाने वाले सांसद और न ही उनके पार्टी का न तो बयान आया और न इस्तीफा.
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