रेहड़ी पटरी कानून ठंडे बस्ते में डाल लाखों लोगों का रोजगार छीन रही सरकार?

Blog – आप जब सड़क पर होते हैं तो कभी न कभी रेहड़ी पटरी वालों को अपने सिर पर खोमचा रखकर या अपने रेहड़ी को भगा कर गिरते-पड़ते भागते हुए देखा होगा. जी हाँ, मैंने भी देखा है. जब एमसीडी के गाड़ी आने का हल्ला मचता है तो कई बार ग्राहक को सामान देने के बाद बिना पैसा लिए ही, अपनी रेहड़ी बचाने के लिए जान बचाकर भागना पड़ता है. अगर कोई समय पर भाग नही पाता तो उसका खोमचा एनसीडी कर्मचारियों के भेंट चढ़ जाता है.

मगर फिर भी रेहड़ी पटरी वाले दुबारा से हिम्मत कर, पैसे जोड़ कर अपना नया खोमचा बनाकर अपने काम में लग जाते हैं. पूछने पर बताते है कि बाबू पेट का सवाल है, यह सब करना ही पड़ता है. ऐसा नही है कि ये लोग फ्री में रेहड़ी लगाने को मिलता हो. यह जानकर आपको आश्चर्ज होगा कि एक रेहड़ी का एमसीडी से लेकर पुलिस और लोकल दादा को पैसे खिलाने पड़ते हैं. मगर उसके बाबजूद भी ये आराम से सामान बेच नही सकते हैं.

ऐसा ही कुछ परेशानियों से अपना सबकुछ खोकर भी अपने व् अपने अशक्त तथा वृद्ध माता-पिता के जीवन निर्वाह के लिए नरेंद्र सिंह हर जगह गुहार लगा रहे हैं. श्री नरेंद्र सिंह बताते हैं कि वो ए-38, रानी गार्डन, दिल्ली अपने दो छोटे भाइयों श्री इन्दरजीत सिंह और चरनजीत सिंह दिमागी तौर पर दोनों ही 90 प्रतिशत अशक्त तथा वृद्ध माता-पिता के जीवन निर्वाह एवं अशक्त भाइयों की आवश्यक चिकित्सा एवं परवरिश के लिए दिल्ली मेट्रो के करोल वाग स्टेशन के गेट नं. 2 के वाहर फलों के रस एवं सूप की रेहड़ी 2014 से लगा रहा थे.

जुलाई 2015 में दिल्ली पुलिस के लोगों ने हमारी रेहड़ी को वहाॅं लगाने से मना कर दिया. जिसके बाद सितम्वर 2015 में उन्होंने एमसीडी के आफिस में रेहड़ी लगाने के लिए आपकी अनुमति के लिए प्रार्थना पत्र दिया. जिसमें श्री नरेंद्र सिंह की आर्थिक स्थिति और अशक्त भाईयों की परवरिश के लिए आवश्यक खर्च को देखते हुए, श्रीमान के.एस. मेहरा, आयुक्त (निःशक्तजन) ने श्रीमान पी.के. गुप्ता, उत्तरी दिल्ली निगम आयुक्त को अपने पत्र दिनांक 01.10.2015 द्वारा करोलवाग क्षेत्र में उनके लिए एक कियोस्क आवंटित करने की सिफारिश किया था. परन्तु आज तक श्री सिंह को  न तो रेहड़ी लगाने की अनुमति मिली और ना ही कोई कियोस्क आवंटित किया गया. इस दौरान धनाभाव में आवश्यक चिकित्सा एवं उचित परवरिश के अभाव के कारण उनके एक भाई इन्दरजीत सिंह की दिनांक 18.02.2016 को दुखद मृत्यु हो गई.

हर जगह से नाउम्मीद हो चुके नरेंद्र सिंह दिल्ली प्रदेश रेहड़ी पटरी यूनियन (सीटू) के नेता कामरेड एसएन कुशवाहा के देखरेख में अपने आवाज बुलंद करने की कोशिस शुरू की है. जिसके तहत नरेंद्र ने अपनी पारिवारिक स्थिति व् हवाला देकर एमसीडी कमिश्नर व् मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल से गुहार की है कि वो कम पढ़ा लिखे 8 वीं पास एक गरीब वेरोजगार व्यक्ति हैं और अपने दूसरे अशक्त भाई तथा वृद्ध माता-पिता की परवरिश के लिए अन्य कोई आमदनी का साधन न होने के कारण अत्यंत कठिन परिस्थिति में हैं.दुख की बात है कि वो धनाभाव के कारण अपने एक अशक्त भाई को खो चुके हैं.  अगर मुझे शीध्र आमदनी का कोई साधन नहीं मिला तो मुझे अपने परिवार के सदस्यों का भरण-पोषण करना मुश्किल हो जायगा. अब देखना है कि खुद को आम आदमी कहे जाने वाले केजरीवाल और अच्छे दिन का वादा करने वाले इस गरीब आदमी की कब सुध लेते हैं.

ऐसे जानकारी के लिए बता दूँ कि रेहड़ी पटरी से सम्बन्धित विशेषज्ञों व रेहड़ी पटरी संगठनों से बातचीत करके रेहड़ी पटरी जीविका संरक्षण बिल 2013 तैयार किया, मजदूरों के संघर्ष के बदौलत 2014 में कानूनी रूप से संसद से पास करवा दिया गया था. रेहड़ी पटरी जीविका संरक्षण कानून 2014 के मुताबिक दिल्ली को 6 महीने के अंदर इस कानून से संबधित रुल बनाने थे तथा एक वर्ष में स्कीम बनाकर लागू करना था. मगर दिल्ली में आप पार्टी की केजरीवाल सरकार को सत्ता में आए 18 महीने से अधिक हो चुके हैं, परंतु अभी तक केजरीवाल सरकार ने रेहड़ी पटरी जीविका संरक्षण कानून को दिल्ली में पूरी तरह से लागू नहीं किया है. जबकि आप पार्टी रेहड़ी पटरी वाले गरीब व मजदूरों के वोटों के द्वारा ही दिल्ली में ऐतिहासिक जीत के साथ काबिज हुई. नोटबंदी की मार झेल रहे रेहड़ी पटरी खोमचा लगाने वाले अधिकतर मजदूर दिल्ली शहर से पलायन कर चुके हैं और बचे खुचे को  बीजेपी शासित एमसीडी और आप पार्टी राजनितिक लड़ाई में दिन प्रति दिन रेहड़ी पटरी वालों को दिल्ली से भगाने में जूट गई है.
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