महाराष्ट्र किसान आंदोलन: पूनम महाजन पहचानिये, नक्सल नहीं असली भारत माता

महाराष्ट्र किसान आंदोलन को आज भले ही नेशनल मिडिया ने इग्नोर किया हो मगर सोशल मिडिया के नजर से ऐसे पूरी दुनिया ने देखा और सराहा है कि किस तरस नासिक से पैदल चलकर किसानों का जनसैलाव मुंबई पहुंचता है. ज्यादातर लोगों के पैरों में चप्पल नहीं है और अगर है भी तो टूटी. हमने आजादी की लड़ाई नहीं देखी, मगर इस शांतिपूर्व आंदोलन को देखकर लगा कि कुछ ऐसा हो होगा. इस आंदोलन ने पूरी दुनिया में अमित छाप छोड़ी है. इस आंदोलन के आयोजनकर्ता इसके लिए प्रशंसा के पात्र हैं.

महाराष्ट्र किसान आंदोलन की जीत हुई 

बीबीसी न्यूज के खबर के अनुसार  महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फ़डनवीस की अध्यक्षता में महाराष्ट्र सरकार और किसानों के प्रतिनिधिमंडल के बीच एक बैठक हुई. जिसके बाद उन्होंने घोषणा करते हुए कहा कि, “हमने किसानों की सभी माँगें मान ली हैं और उन्हें भरोसा दिलाने के लिए एक लिखित पत्र भी जारी किया है”. आगे उन्होंने कहा कि “किसान मार्च शुरू होने के पहले दिन से ही हम कोशिश कर रहे थे कि किसानों के साथ बातचीत की जाए. हमारे मंत्री गिरीश महाजन शुरुआत से ही किसानों के संपर्क में थे.”

पूनम, ये नक्सल नहीं भारत माता है, पहचानो

इस आंदोलन में अपने अन्नदाता किसानों को तो मुंबई की जनता ने सिर आंखों पर बैठाया तो दूसरी तरफ कुछ लोगों के असंवेदनशील बयान भी आएं हैं. न्यूज 18 के खबर के अनुसार बीजेपी की नेता और सांसद पूनम महाजन ने कहा कि ये महाराष्ट्र में प्रदर्शन कर रहे लोग किसान नहीं, “शहरी माओवादी” हैं. उन्होंने यह भी कहा कि माओवादी किसानों को गुमराह कर रहे हैं. इसके साथ ही पूनम ने कहा कि वो किसानों की इज्जत करती हैं लेकिन, ये किसान लाल झंडे लिए हुए हैं.

अब ऐसे में अब अगर पूनम महाजन की बात माने तो 50 हजार नक्सली सैनिक नंगे पांव अपने पैर में फोले लिए 180 किलोमीटर पैदल चलकर मुंबई पहुंचते हैं. उनके हाथ में बन्दुक के जगह लाल झंडा है. वो गोली चलने की जगह इंकलाब का नारा लगा रहे थे. वो कह रहे थे कि हमें हमारा हक़ चाहिए. बिना किसी को नुक्सान पहुंचाए, बच्चों के परीक्षा का ख्याल रखते हुए, सभा करते हैं सरकार के पास अपनी मांग रखते हैं और फिर मांग मानने के बाद अपने घर लौट जाते हैं. अजीब तरह के नक्सल थे भाई.

पूनम महाजन जी अगर ये नक्सल होते तो आज मुंबई जल रहा होता. हमें अफ़सोस है कि हमलोग अपनी आवाज सरकार तक पहुंचने के लिए आपको वोट देकर चुनते हैं, मगर लोग कुर्सी मिलते ही कुछ लोग खुद को राजा समझने की भूल ही नहीं करते बल्कि उनके तरह व्यवहार भी करते हैं. लाल झंडा का लाल रंग क्रांति का प्रतीक है. यह लाल रंग किसान और मजदूरों के कुर्बानी के खून से लाल हुआ है. जब भारत के संविधान में ही एक वोट एक अधिकार की बात है तो भेदभाव क्यों?

एक रिपोर्ट के अनुसार देश के भले ही 70 फीसदी संपत्ति पर 10 प्रतिशत लोगो का कब्ज़ा हो मगर याद रखे अभी भी हम अपने वोट के मालिक खुद है. आज चाहे हर पार्टी गरीब के नाम पर वोट मांगती हो. वोट लेकर उनकी सरकार भी बन जाती मगर अफसोस आज गरीब किसान और मजदूरों को ही फांसी लगाना पड़ता है. हम गरीब जनता के खून पसीने के कमाई जो माल्या और नीरव मोदी जैसा लुटेरा लूट ले गया. इसके बारे में तो अभी तक आप BJP वालो ने कुछ बोला तक नहीं.

इस आंदोलन में 180 किलोमीटर पैदल चलकर आई बूढ़ी गरीब मां की तस्वीर को गौर से देखिये और सोचिए की उम्र के आखरी पड़ाव पर भी इतना कष्ट उठाकर क्यों आई? यह इसलिए आई ताकि आप जैसे सरकार में बैठे लोगों इनके ऊपर ध्यान दें, अपने चुनावी वादे पुरे करें. ताकि आगे से कर्ज में डूबा कोई और किसान आत्महत्या न करे. देशवासी भी भूखे न मरे. अरे, जब किसान ही नही होगा तो खेती कौन करेगा, गन्ना, गेंहू, चावल कौन उपजायेगा. अगर गौर से देखो यह बूढी माता ही असली भारत माता है. जिसको अपनी नहीं बल्कि अपने पीढ़ी और किसान की चिंता है. केवल नारा लगाने से नहीं होता बल्कि पहचान भी बड़ी चीज है. वैसे, पहले डाकू भी डाका डालने से पहले “जय मां भवानी” का नारा लगाते थे.

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