सुशील मोदी को वेतन में देरी तो करवाई की मांग, मगर शिक्षकों को 6 महीने से नहीं मिला

बिहार के उपमुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री सुशील कुमार मोदी वेतन में देरी हुई. जिसके बाद वे नाराज होकर मंत्रिमंडल सचिवालय को पत्र लिखकर संबंधित दोषी पदाधिकारी व कर्मचारी पर कार्रवाई का निर्देश दिया है. यह उनके साथ शायद पहली बार हुआ होगा. मगर बिहार सरकार का पुराना रिकॉर्ड है कि मजाल है कि किसी भी विभाग के कर्मचारियों को हर महीने वेतन मिल जाए.

प्रभात खबर के अनुसार सुशील मोदी ने कहा कि उनके वेतन आदि का मामला स्टाफ देखते हैं. तीन-चार दिन पहले उनके हमारे स्टाफ बता रहे थे कि उनके कार्यालय के कुछ लोगों का वेतन अभी तक नहीं आया है. क्या तकनीकी मामला है, जिसके कारण ऐसा हुआ है, इसकी जानकारी मुझे नहीं है. जबकि मंत्रिमंडल सचिवालय के प्रधान सचिव ब्रजेश मेहरोत्र ने कहा कि मुझे अभी तक ऐसा कोई पत्र प्राप्त नहीं हुआ है. मगर, वेतन भुगतान में किसी की लापरवाही से विलंब हुआ है तो दोषियों पर कार्रवाई होगी.

वही दूसरी तरफ देखे तो बिहार में स्कूलों में पढ़ने वाले नियोजित शिक्षक हो या बिहार विधान सभा में काम करने वाले कर्मचारी किसी को भी हर महीने में सैलरी नहीं दी जाती. नियोजित शिक्षक को तो पिछले 6 महीने से वेतन का भुगतान हुआ ही नहीं. पैसे के आभाव में कई शिक्षकों की मृत्यु तक हो चुकी है.
बिहार विधान सभा में संविदा पर काम करने वाले कलर्क का हाल और भी बुरा है. वहां काम करने वाले एक साथी ने बताया कि जब तक साहब नहीं चाहते तब तक घर नहीं जा सकते और सैलरी भी भगवान भरोसे ही मिलती है. ऐसे में वो किसको शिकायत करें और किसपर कार्रवाई की मांग करें.

अब जब मोदी जी की खुद की सैलरी मिलने में 10 दिन की देरी हो गई तो करवाई की मांग करने लगे. एक मंत्री या विधायक को हरेक सुविधा मुफ्त में मिलती है. जबकि एक कर्मचारी का भोजन, रहन-सहन, बच्चों की पढाई आदि सब कुछ मासिक सैलरी पर ही निर्भर होता है. ऐसे में कौन सा मकान मालिक आपको हर महीने रेंट नहीं लेगा. कौन सा स्कुल बच्चों से फ़ीस नहीं मांगेगा? कौस सा सब्जीवाला उधार में सब्जी देगा? कौन सा डॉक्टर मुफ्त में इलाज करेगा?  तो सोचिये उनका क्या हाल होगा?

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