UPNL Worker मामले में उत्तराखंड सरकार कानून के उल्लंघन पर उतारू

उतराखंड का उपनल के नाम से आपलोगो अच्छी तरह वाकिफ होंगे. इससे पहले भी हमने उनके बारे में अपने आर्टिकल के माध्यम से जानकारी दी थी. (अगर नहीं पढ़े तो नीचे लिंक दिया है). उपनल कर्मचारी महासंघ के लम्बे संघर्ष और मांग के बाद राज्य सरकार ने न्यूनतम मजदूरी (UPNL Worker Salary) बढ़ने की घोषणा की है.

UPNL Worker मामले में खुला उल्लंघन

अभी तक आउटसोर्स/ठेका कर्मचारियों को अकुशल 5608 /-से बढ़कर 7108/- अर्धकुशल 6655/- से बढाकर 8155/- कुशल का 7540/-  से बढाकर 9040/- और उच्च-प्रशिक्षित यानी स्नातक का 8540/-  से बढ़ाकर 10,040/- किया गया है. एक तरह से देखे तो प्रति कर्मचारी मात्र 1500 /-रूपये की महीने में वृद्धि की गई है. इसका मतलब एक दिन का 50/- रुपया मात्र. जबकि आज सरकार के विफलता के कारण आसमान छूती मंहगाई में 50/- रुपया में बच्चे का एक डाइपर भी नहीं आता.

संसद और राष्ट्रपति के वेतन की तुलना

अभी कुछ दिन पहले ही जनता के सेवक कहे जाने वाले संसद और राष्ट्रपति के वेतन की तुलना में इस मामूली वृद्धि को भले ही गोदी मिडिया सरकार का तोफा कहे मगर हम तो इसको लॉलीपॉप ही कहेंगे. वह भी चूस कर फेका हुआ. शायद सरकार को पसंद करने वाले को हमारी बात बुरी लगे. मगर इस बात को साबित करने के लिए काफी वजह है.
इसको जानने के लिए हमारे पोस्ट को अंत तक पढ़ने का कष्ट उठाना पडेगा. इसके बाद भी अगर कोई भी सवाल हो तो पोस्ट के अंत में कमेंट बॉक्स में सीधे लिखकर पूछ सकते हैं. चाहे आपके सवाल कैसे भी क्यों न हों. हरेक के सवाल का जबाब दिया जायेगा. आइए अब उपनल के पूरी कहानी को एक बार फिर से समझते हैं.

समान काम का समान वेतन देने का आदेश

अभी एक महीने पहले ही उत्तराखंड हाईकोर्ट ने उपनल के माध्यम से पॉवर कॉर्पोरेशन में कार्यरत डेटा इंट्री ऑपरेटर और स्टेनोग्राफर को समान काम का समान वेतन देने का आदेश जारी किया है. पावर कॉर्पोरेशन में उपनल के माध्यम से नियुक्त आउटसोर्स कर्मचारी विनोद और अन्य ने इस मामले में हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी.
इसके बाद पुनः इसी उत्तराखंड हाईकोर्ट का एक और आर्डर आता है. जिसमे कहा जाता है कि नियमित प्रकृति के काम में रेगुलर कर्मचारियों को ही लगाया जाए. जिसके बाद प्रदेश में काम कर रहे 22 हजार आउटसोर्स कमचारियों के नौकरी के ऊपर तलवार लटक जाती है. ऐसे कोर्ट का यह आर्डर भी कानून के तहत सही है. मगर कोर्ट ने राहत के नाम पर पहले से काम कर रहे कर्मचारियों को राहत देने की बात की मगर यह शायद भूल गए कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के आदर्श के अनुसार 10 साल या अधिक से काम कर रहे कर्मचारी परमानेंट होने के हकदार हैं.
इतना ही नहीं बल्कि इसके कुछ दिन बाद लोक निर्माण विभाग में कंप्यूटर ऑपरेटर के पद पर कार्यरत संजय जोशी के याचिका पर एक और अहम् फैसला आया. जिसमे हाई कोर्ट ने उपनल के याचिकाकर्ता को न केवल समान वेतन देने का ऑर्डर दिया. इससे फिर से एक बार बाकी लोगों में आस जागना स्वभाविक है.
अब इस तरह के ताबरतोड़ केस से सरकार को घबराना लाजिमी है. कोई भी सरकार कभी भी किसी भी कर्मचारी को हक़ तोफा या गिफ्ट नहीं देती. जैसा की गोदी मिडिया प्रचार करती है. इसके बाद उत्पल कुमार सिंह, मुख्य सचिव, उत्तराखंड शासन ने 27 अप्रैल 2018 को आनन्-फानन में आर्डर संख्या XXX/(2)/2018-30(12)/2018 विभिन्न विभागों में दैनिक वेतन/संविदा एवं आउटसोर्स पर तैनात संविदा पर काम करने वाले कर्मचारियों के सबंध ने दिशा निर्देश जारी कर दिया.

उपनल महासंघ के महासचिव ने फोन कर

उपनल महासंघ के महासचिव श्री संदीप भोटिया जी ने फोन कर इस आर्डर की जानकारी दी और इसको शेयर किया. जिसको (Notification Download Here) पढ़ने के बाद अभी तक अपनी हंसी रोक नहीं पा रहा हूं. अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर ऐसा क्या पढ़ इस आर्डर में. दोस्तों बात दूं कि हंसी इसलिए आई कि इस आर्डर में लिखा है कि समान वेतन पाने के लिए कर्मचारी की वैवाहिक स्थिति भी समान होनी चाहिए. ऐसा लगता है कि उत्तराखंड में कुछ ज्यादा ही भांग मिलता होगा.
खैर आइये, इस आर्डर को स्टेप-बाई-स्टेप समझते हैं. पहले ही कहा था कि पोस्ट काफी लम्बा होगा, अंत तक पढ़ेंगे तभी इसका फायदा होगा. मगर केवल अकेले पढ़ने से फायदा नहीं होगा. जब तक इस हकीकत को 22+ हजार लोग न जाने पाये कि किस तरह सरकारी अधिकारी अपने पद का दुरूपयोग करते हैं. हम हमेशा से कहते हैं कि एकता में ही बल है. इसलिए इस पोस्ट को अपने अन्य सभी साथी को जरूर शेयर करें.
अब आगे बढ़ते हैं. उक्त आर्डर के पारा-2 में महोदय ने लिखा है कि शासन यानि सरकार के सज्ञान में आया है कि नियोजित/ठेका/आउटसोर्स के तहत नियुक्त कर्मी लम्बे समय से काम करने के कारण “समान काम का समान वेतन” की मांग कर रहे हैं. इसके लिए वो समय-समय पर कोर्ट में याचिका भी डाल रहे हैं. उन्होंने लिखा है कि ऐसे व्यक्तिओं द्वारा पद सृजित नहीं होने पर भी समान वेतन का आर्डर प्राप्त कर लिए हैं.
अरे भाई साहब जी, कोर्ट कोई भिंडी बाजार थोड़े है कि वहां आर्डर बिकता हो. आपने क्या समझा कि कोर्ट में कोई व्यक्ति गया और आर्डर खरीद लिया. कोर्ट हमारे कानूनी अधिकार बचाने के लिए बना है. हमें जब लगता है कि हमारे हक़ का हनन हो रहा, तो हम कोर्ट का शरण लेते हैं और कोर्ट दोनों पक्ष को सुनने के बाद फैसला देता है. यह क्यों नहीं मानते कि आप जिसको एक अदना सा कर्मचारी या व्यक्ति समझ रहे थे. उसने आपको मात दिया है.
इस आर्डर के पारा-3 पर गोबर रख कर आगे बढ़ते है. देश का सबसे बड़ा कोर्ट माननीय सुप्रीम कोर्ट है. सुप्रीम कोर्ट ने आर्डर दिनांक 26 अक्टूबर 2016 के सामने 2013 के आर्डर की बात करना ही गोबर दिमाग का काम है. यह तो एक कम पढ़ा लिखा व्यक्ति को पता है.
इसके बाद पारा- 4 पर आते हैं. जिसमें 2003 के किसी आर्डर का जिक्र है. साहब आज 2018 आ गया है. आप केवल यह बता दीजिये कि संविदा कर्मचारियों से पिछले 10-12 साल से क्या काम लिया जाता है. उनको रेगुलर पोस्ट पर बराबर काम लिया जाता है. यह हम नहीं बल्कि खुद उत्तराखंड हाई कोर्ट ने पावर कॉर्पोरेशन व अन्य मामलों में के मामले में कहा है. अब कल या मत कह दीजिये कि हम आपको वर्दी अलाउंस नहीं दे सकते, पहले आदि काल में तो लोग नंगे ही रहते थे.
पारा-5,6.7 को गौर से पढियेगा. इसमें सरकारजी ने “समान वेतन” के लिए समानता की बात की है. इसके बारे में एक शब्द में अगर कोई हमसे जबाब मांगे तो हम जबाब दे सकते हैं. यह बात खुद सबसे पहले मैंने दिल्ली हाई कोर्ट में ठेका वर्कर के “समान काम का समान वेतन” के जनहित याचिका में उठाई थी. हमें जीत मिली, इसके बाद बिहार के नियोजित शिक्षकों को बताई. फिर उनके वकील ने पटना हाई कोर्ट के बहस में रखी. इसके बाद जीत मिली और 3.5 लाख नियोजित शिक्षकों के लिए पिछले 7 वर्ष का एरियर लगभग 25 लाख प्रति कर्मचारी के साथ समान वेतन देने का आर्डर हुआ.

चपरासी के बराबर भी वेतन के हकदार नहीं?

इतना कुछ पढ़ने के बाद आपकी जिज्ञाषा बढ़ गई होगी. सरकारजी, हम किसी भी पद के अगेंस्ट दाबा नहीं करते. हमें केवल इतना बता दीजिये कि क्या हम 8वीं क्लास पास चपराशी के बराबर भी वेतन के हकदार नहीं. अभी सरकारी चपराशी का वेतन 30 हजार मासिक और अन्य सुविधा है. क्या हम उनके बराबर भी काम नहीं करते?
अपने 26 अक्टूबर 2016 के फैसले में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि समान वेतन सभी तरह के कर्मचारी का संवैधनिक हक़ है. चाहे उनकी भर्ती किसी भी रूप में चाहे 1 दिन के लिए ही क्यों न हो, अगर वो समान काम करते हैं तो समान वेतन के हकदार हैं. इसके लिए आप सुप्रीम कोर्ट के 26 अक्टूबर 2016 के निर्णय का कॉपी यहां क्लिक कर डाउनलोड कर पढ़ सकते हैं.
इनका पारा-8 पूर्णतः झूठ का पुलिंदा है. अगर ऐसा नहीं होता तो अभी इसी वर्ष आपके समान काम को देखकर ही उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सामान वेतन देने का आर्डर जारी किया है. यह तो लिखने की बात है कि आउटसोर्स वर्कर को कोई जिम्मेवारी नहीं है. आज हर विभाग में क्या आलू तौलने के लिए 70% से अधिक पदों को ठेके पर दिया है.
साहब की तो बात ही निराली है, उन्होंने लिखने के धून में यह भी लिख दिया कि ओउटसोस वर्कर को आरक्षण नहीं मिलता, इसलिए समान वेतन नहीं मिल सकता.(क्रम संख्या-17 देखें). इस दौरन यह भी लिखा है कि सरकारी कर्मचारी 24 घंटे सरकार के गुलाम यानी अधीन है (क्रम संख्या-9 देखें).
इस आर्डर का पारा-9 पूर्णतः गलत और सुप्रीम कोर्ट के 26 अक्टूबर 2016 के आर्डर का अवहेलना है.इसके साथ ही पारा-10  में इस तरह यानि आउटसोर्स वर्करों की न्युक्ति को ये उमा देवी जजमेंट के तहत अनियमित बता रहे हैं. ऐसे लगता है कि ये आउटसोर्स वर्कर खुद से नियुक्त हो गए और इतना ही नहीं बल्कि पिछले 10-12 साल से जबरदस्ती काम भी कर रहे और सैलरी भी पा रहे हैं.

UPNL वर्कर मामले में उत्तराखंड सरकार कानून के खुला उल्लंघन पर उतारू?

 
 
अब शायद आप पढते-पढ़ते बोर हो रहें होंगे. इसलिए इसको जल्द समाप्त करने की कोशिश कर रहा हूं. इसके बाद के सभी पारा को पढ़ने से यही प्रतीत होता है कि सरकार आपके खिलाफ साजिश रच रही है. इस आर्डर के अनुसार ये आपको नौकरी से हटाकर नियमित बहाली लेने के मूड में हैं. मगर हमारा यह कहना है कि ऐसा करना इनके वश में नहीं है. आपको क्या लगता है कि आपकी जगह अगर नियमित भर्ती करते है तो क्या उसको समान वेतन नहीं देना पड़ेगा.
आपका जबाब होगा, “देना पड़ेगा”. फिर आपको देने में क्या हर्ज है? जबकि आपलोगों के पास योग्यता के साथ अनुभव भी है. यही तो सिस्टम है भईया. अभी सरकार बनी है. ये आपको डरायेंगे कि चुप रहो नहीं तो इस आर्डर के अनुसार नौकरी से निकाल देंगे. ये कहेंगे कि तुम्हारी सैलरी बढ़ तो दी 1500 रुपया और क्या चाहिए. ये भूल रहे कि हर महीने आपके पीएफ का घोटाला कर रहे हैं. इसके साथ ही जीएसटी के नाम पर भी लूट मचा रखी है.

न्यूनतम वेतन 21 हजार प्रतिमाह की मांग

इन्होने लगे हाथों यह भी कह दिया कि रेगुलर पोस्ट पर संविदाकर्मी/आउटसोर्स/डेलीवेजर आदि की भर्ती नहीं करेंगे. अगर कोई विभाग इस तरह की न्युक्ति करता है तो सम्बंधित अधिकारी के वेतन/पेंसन से उक्त राशि की कटौती की जायेगी. खैर यह तो डराने की बात है. यह पहले से  कानून हैं और पिछेल कई वर्षो से रेगुलर पोस्ट पर ठेके की न्युक्ति धर्मधकेल चल रहा है.
उपनल महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष दीपक चौहान ने बताया कि न्यूनतम वेतन 21 हजार रुपये प्रतिमाह व कर्मचारियों के सुरक्षित भविष्य को नीति बनाने और कर्मचारियों को नौकरी से नहीं हटाने की मांग लंबे समय से की जा रही है.
साहब को शायद यह नहीं पता कि अभी लेटेस्ट नैनीताल हाईकोर्ट ने समान वेतन का फैसला सुनाया है. इसको लागू नहीं करेंगे और अगर याचिकाकर्ता ने कोर्ट के आर्डर के अवहेलना का केस कर दिया तो 6 महीने का जेल कोई रोक नहीं सकता है. हम तो सुझाव देंगे कि सबसे पहले जिस कोर्ट ने आर्डर दिया. उसी कोर्ट में “कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट” का पेटिशन फ़ाइल करें.
इसके पहले भी अपने आर्टिकल के माध्यम से उपनल के द्वारा आपके सैलरी से पीएफ और जीएसटी के गलत कटौती की बात बताई थी. अगर नहीं पढ़ा तो एक बार जरूर पढ़ें (उत्तराखंड उपनल कर्मचारियों के वेतन से पीएफ व जीएसटी के नाम पर महाघोटाला) और अमल में लायें. दाबे के साथ कहता हूं, समय लगेगा मगर आपके कई अधिकारी जेल के अंदर नजर आएंगे. इसके बाद आपकी सैलरी भी बढ़ेगी.

अब बस यही कहूंगा कि अपनी एकता बरकरार रखें. सभी कर्मचारियों को एकजुट करें. सरकार की हकीकत बताएं. चुनाव फिर आनी है. ये हम से हैं, हम इनसे नहीं. झूठे वादे की सरकार नहीं चलेगी, नहीं चलेगी. जो वर्कर का काम करेगा वही देश पर राज करेगा. इसके साथ ही मजदूर दिवस की बधाई.

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2 thoughts on “UPNL Worker मामले में उत्तराखंड सरकार कानून के उल्लंघन पर उतारू”

  1. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद
    21 हजार कर्मचारियों की आवाज को प्रमुखता से उठाने के लिए…..

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  2. दीपक भाई, धन्यबाद तो आपका जो उत्तराखंड के ठेकाकर्मियों के हक की लड़ाई लड़ रहे हैं.

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