Bihar Niyojit Teacher समान वेतन की लड़ाई और सरकार की चाल समझना?

Blog: आज Bihar Niyojit Teacher के समान काम के समान वेतन का पटना हाईकोर्ट द्वारा फैसला आये हुए लगभग महीना से ऊपर होने को है. इस बीच काफी कुछ उठा-पटक हो चूका है. इसके बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा. मगर नियोजित शिक्षकों को सचेत करना जरूर चाहूंगा. उससे पहले अपने बारे में एक बात स्पष्ट कर दूं कि हमारा ज्यादा अनुभव तो नहीं मगर पिछले 5 साल से 24 घंटे सरकार की चाल और मजदूरों के साथ काम करने में बीता है.

Bihar Niyojit Teacher समान वेतन की लड़ाई और सरकार?

हर रोज अलग-अलग क्षेत्र में काम करने वाले जैसे एक रेहड़ी-पटरी मजदूर से लेकर पढ़े-लिखे मज़दूर यानि आज के वर्करों से बात होती है. उनकी कहानी सुनता हूं. उस कहानी को विश्लेषण करना और फिर कहानी लिखने के साथ ही साथ उनको सही राह दिखाने की कोशिश भी करता हूं. इससे काफी लोग लाभान्वित भी हुए है. हमारे इस ब्लॉग का मकसद मजदूरों की सहायता करना है. आज एक भी फोन या मैसेज किसी भी मुद्दे के बारे में आ जाता है तो निःस्वार्थ भाव से उनकी मद्दत करने की कोशिश करता हूं. आज Bihar Niyojit Teacher के मामले में भी इस आर्टिकल के माध्यम से कुछ तथ्य रखने की कोशिश कर रहा हूँ.

हमारे स्कुल में सरकार के कामकाज के बारे में जो पढ़ाया गया था. वह राय बिलकुल बदल गई है. सन 2013 से पहले हम देश के कानून को बहुत ही मजबूत मानते थे. मगर इस 5 वर्षों मजदूर संघर्ष में आने के बाद सोच ही बदल गई. आप लोगो के तरह पहले हमें भी हर नेता लोगों में मजदूर का मसीहा दीखता था. मगर समय बीतता गया और सोच और राय बदलती गई.

आज से 5 वर्ष पहले “समान काम का समान वेतन” की बात बहुत ही काम लोग जानते थे. मगर धन्य हो इंटरनेट कि हमारे और आपके जैसे चंद लोगों के कारण आज हर शोषित और पीड़ित वर्कर केवल यही मांग कर रहा है. मगर अफ़सोस कभी हम वोट देने वाले नेताओं और सरकार के सामने अपनी यह मांग मजबूती से रख नहीं पाते. इसके बारे में अपनी ही कमी को मानूंगा.

आप शिक्षक न होते और सरकार भी कुर्सी?

सरकार बनने से पहले हम केवल वोटर होते हैं मगर सरकार बन जाने के बाद अपनी मांगे मनवाने की जगह हिन्दू, मुसलमान, अगड़ा, पिछड़ा, दलित में बदल जाते हैं. ऐसा नहीं है कि हम आपके राजनितिक भावना को ठेस पहुंचाने की कोशिश कर रहें, बल्कि हम तो केवल यह याद दिलाना चाहते हैं कि एक कहावत सबने सुनी होगी कि “भूखे भजन न होत गोपाला, ले ले अपनी कंठी माला”. अगर पेट न होता तो आज आप शिक्षक न होते और सरकार भी कुर्सी पर बैठी नहीं होती.

अब इस पोस्ट के असली मकसद पर आते है. जैसे ही बिहार के नियोजित शिक्षकों के “समान काम का समान वेतन” का फैसला पटना हाई कोर्ट ने दिया. वैसे ही शोशल मिडिया के द्वारा पुरे देश में यह खबर आग के तरह फ़ैल गई. इसके बाद इस फैसला का क्रेडिट लेने की होड़ सी मच गई. जानकारी के लिए एक बार फिर से याद दिला दूं कि इस केस में 13 से ज्यादा लोगों या संघ/संघटनो ने पार्टी बन कर मुद्दा को उठाया था.

जाहिर सी बात है कि कोई ज्यादा तो कोई कम, हमारी नजर में हर कोई महत्वपूर्ण है. ठीक वैसे ही जैसे हमारे हाथ में पांच उंगलियां हैं कोई छोटी, कोई बड़ी, कोई पतली तो कोई मोटी, मगर एक बात सबने गौर किया होगा कि अगर रोटी कामना हो या खाना हो. कोई एक उंगली अकेले रहकर सही तरीके से कोई भी काम नहीं कर सकता है. ठीक उसी तरह अगर सभी उंगली मिल जाये तो मुक्का बनकर दुश्मन के दांत ही खट्टे नहीं करता बल्कि इंकलाब जिंदाबाद के नारे भी लगाता है.

अगर इस फैसले के बारे में हमसे पूछेंगे तो हम तो इस फैसले का असली हीरो जस्टिस साहब को मानेंगे. आज आप चाहे जितना भी अच्छा से अच्छा वकील रख लें, चाहे जितना पैसा खर्च कर लें, चाहे जितना भी मेहनत कर लें मगर आपकी हार या जीत का फैसला केवल और केवल जज के हाथ में होता है. याद रखे कमजोर हाथ में कलम भी फैसला लिखते समय कांप जाता है. ऐसे में किसी को जीत का क्रेडिट देने से पहले इस पहलु को भी गौर करना चाहिए.

केवल नियोजित शिक्षकों की एकता की बात करते?

इसके बाद इस लड़ाई को लड़ने वाले कुछ ऐसे भी लोग हैं. जो क्रेडिट से दूर खड़े होकर केवल और केवल नियोजित शिक्षकों की एकता की बात करते है. वो चाहते है कि किसी भी तरह से सभी नियोजित शिक्षक एक हो जाएं. भले ही उनका संघ/संगठन अलग-अलग ही क्यों न हो. यही नहीं बल्कि काफी समय पहले से वो प्रयासरत भी है. ऐसे ही कुछ लोग जो “शिक्षक चौपाल” नाम से काम को अंजाम दे रहें है.
इसके बारे में अपने फेसबुक मित्र श्री संजीव समीर, शिक्षक से बात हुई. उन्होंने खुले शब्दों में कहा कि “भैया हम तो केवल सभी शिक्षकों संघों की एकता की बात करते हैं. जिस दिन सभी एक हो जायेंगे उस दिन चौपाल का काम समाप्त”. पहली बार लगा कि लोग एकता को कितना महत्व दें रहे हैं. मगर दूसरी तरफ लोगों के बीच आपसी भेद-भाव की खाई इतनी है कि पाटना मुश्किल ही है. कुछ लोग अपने आप को कांग्रेस सरकार से तो कुछ बीजेपी सरकार से तो कुछ जदयू से तो कुछ राजद से जोड़कर देखते है.
हमने संजीव भाई को बताया कि इस तरह से नियोजित शिक्षकों को एक करना बहुत ही मुश्किल काम है. अब अगर एक नहीं हुए तो “समान काम का समान” वेतन तो छोड़ दीजिये नौकरी बचाना भी मुश्किल होगा. मगर फिर भी इस परिस्थिति से भागा नहीं जा सकता है. हम सब मिलकर प्रयास करें. इसके बाद सभी बातों को विश्लेषण करने के बाद हमने एक आर्टिकल लिखा. -> बिहार के नियोजित शिक्षक का समान वेतन, कितने दूर कितने पास, जरूर पढ़ें.

अपने इस आर्टिकल के माध्यम से शिक्षकों व् शिक्षक संघ/संगठनों को एक मंच पर आकर सरकार के नीतियों का विरोध करते हुए जीत हासिल करने का सुझाव दिया था. यकीन नहीं करेंगे इस आर्टिकल को मात्र 28 दिन में लगभग 60 हजार+ से ज्यादा लोग पढ़ चुके है. इसका इतना अधिक असर होगा, हमने सपने में भी नहीं सोचा था. इस पोस्ट के लिखने के मात्र 7 दिन बाद ही सुनने में आया कि सभी शिक्षक संघ/संगठन के मंच पर आने को तैयार है. इसके बाद पहली मीटिंग में 20 तो दूसरे मीटिंग में 33 शिक्षक संघ/संगठन के एक मंच पर आ गए. इसके साथ ही इस मंच का नामकरण “शिक्षक संघर्ष मोर्चा” के नाम से भी हो गया. सुनकर अच्छा लगा. हम यह कतई दावा नहीं करते कि यह हमारी वजह से हुआ. मगर हमें ख़ुशी इस बात की है कि बांकी लोगों के तरह हम भी शिक्षकों के एकता के लिए सफल प्रयास का हिस्सा बने.

मगर इसके बाद, दूसरी मीटिंग दिनांक 22 नवम्बर 2017 को लोगों ने जल्दीबाजी करते हुए 29 नवम्बर को बिहार विधान सभा घेराव का फैसला ले लिया. अब हम यह नहीं कह सकते कि यह फैसला नासमझी में लिया गया था. लोगो ने सोच विचार कर ही फैसला लिया होगा. खैर, इस दिन को लोग कभी भूल नहीं पायेंगे.
मगर इसके कुछ दिन के बाद ही सुनने में आया कि किसी बीजेपी एमएलसी साहब के ऑफिस में मीटिंग करते समय शिक्षक नेताओं के बीच मारपीट और गली-गलौज हुई. इसके बाद उस एमएलसी महोदय का आधिकारिक बयान आया कि इस तरह से मारपीट करने वाले लोग शिक्षक के नाम पर कलंक है. बिलकुल सही बात कही. खैर इसके बारे में किसी का नाम भी लेते हुए कहूंगा कि इसके बाद इस एकता में टूट की खबर भी आने लगी.

एक भी वेतन की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन नहीं

फिर आम शिक्षकों के अरमानो पर पानी फेरते हुए 29 नवम्बर के विधान सभा घेराव के फैसले का स्थगन का आदेश आ गया. जी हां इसको आदेश ही कहेंगे. कोर्ट का अवमानना न हो जाये ऐसा बोल कर कुछ शिक्षक संघों ने यह आदेश जारी किया. इसके बारे में इतना ही कहना चाहूंगा कि “समान काम का समान वेतन” का केस हाई कोर्ट में लगभग पिछले 8 साल से विचाराधीन था. केवल इतना बता दीजिये कि क्या इस 8 साल के दरमियान आप लोगों ने क्या एक भी वेतन की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन नहीं किया? और अगर किया तो, क्या तब कोर्ट का अवमानना नहीं हुआ? फिर अब क्या हुआ?

अभी प्रदर्शन नहीं कर सकते यह किस पागल वकील ने कह दिया. कमाल की बात है सुप्रीम कोर्ट के समान काम के समान वेतन का फैसला दिनांक 26 अक्टूबर 2016 को भी तक किसी सरकार ने लागू नहीं किया तो वह अवमानना नहीं हुआ? एक सीधी सी बात है कि कोर्ट के आदेश को लागू करने की मांग करना कोर्ट की अवमानना कैसे?खैर इसके बाद बहुत मेहनत से एकजुट हुए आधे संघ के लोग आंदोलन से भाग खड़े हुए.

इसके बारे में इतना ही कहना चाहूंगा कि सरकार के चहेते लोग सरकार की खिड़किडी नहीं सकते हैं. यह बात शायद कुछ लोगों को बुरा लगा हो, मगर जब 4 लाख शिक्षकों के हीत की आड़ लेकर लोग अपना हीत सोच सकते है. मगर एक बात स्पष्ट हो गई कि सभी शिक्षक संघों के एकजुट होने से सबसे ज्यादा घाटा बीजेपी समर्थित नीतीश सरकार को होनी है.

अब आप आसानी से समझ सकते हैं कि कौन नहीं चाहेगा कि सभी शिक्षक संघ/संघठन एक मंच पर आयें. हमने पहले ही कहा था कि अगर सभी शिक्षक एक हो गए तो सरकार को झक मारकर सामान वेतन देना पड़ेगा. अब सरकार हर तिकड़म लगायेगी की आप एक न हों. इसके बाद यह मत सोच लीजियेगा कि आपकी एकता में फूट डालने नितीश जी खुद आपके बीच आयेंगे. अरे साहब ऐसे सरकारी लोग आपके बीच पहले से मौजूद होंगे. वह केवल आपके साथ होने का दिखवा करेंगे मगर उनका असली मकसद आपको आंदोलित होने से रोकना, आपको गलत कदम उठाने को बाध्य करना होगा. जिसका आज न कल घाटा आपको ही उठाना पड़ेगा.

खैर शिक्षकों में सरकार के प्रति गुस्सा गुब्बार बन का फूटा और बिना किसी संघ के 29 नवम्बर को विधान सभा घेरने पहुंच गए. बाद में सुनंने में आया कि कुछ नेता लोग बाद में फैसला बदलते हुए इस आंदोलन में भाग लेने पहुंच गए. उस दिन का शोसल मिडिया के माध्यम से भीड़ देखकर अच्छा ही नहीं लगा बल्कि यह अहसास भी हो गया कि मजदूरों को आंदोलित होने के लिए ठग संघो को जरुरत नहीं है. जो सरकार को भीड़ दिखाकर अपना उल्लू सीधा करता हो.

बिहार स्टेट प्राइमरी टीचर्स एसोसिएशन “गोप गुट” के भूतपूर्व सचिव श्री शिवचंद्र प्रसाद नवीन ने याद करते हुए बताया कि राबड़ी और नितीश सरकार ने सन 2002 और सन 2005 मतलब तो दो टर्म ने शिक्षामित्रों की बहाली की थी. उस समय मानदेय के रूप में सभी शिक्षको को 1500 रुपया मासिक दिया जाता है. मगर अचानक सन 2005 में मानदेय बढ़ाने की मांग को लेकर शिक्षामित्र हड़ताली मोड़ पर प्रदर्शन करने बैठ गए. जिसकी जानकारी मिलते ही धीरे-धीरे पुरे प्रदेश से उनका साथ देने लगभग 50,000 शिक्षक पटना पहुंचकर प्रदर्शन करने लगें.

इस आंदोलन का कोई नेतृत्व न होने से न तो सरकार प्रदर्शन के पूर्व को नोटिस दिया और न ही प्रदर्शन के माध्यम से कोई मांग पत्र ही सौंपा गया. एक तरह से पूरा पटना का चक्का जाम कर दिया. इससे खफा होकर इसी नितीश सरकार के आदेश पर पुलिस ने उस जाड़े की कपकपाती रात में लाठी चार्ज ही नहीं किया बल्कि सड़क पर सोते शिक्षकों पर पानी की बौछाड़ भी कर दी.

शिक्षामित्रों का संयोजक बनाकर सरकार को मांग पत्र सौंपा?

इतना से भी उनका दिल नहीं भड़ा, फिर महिलाओं तक को लाठी मार का लहूलुहान कर दिया था. जिसके बाद पुरे पटना में कर्फु सी स्थिति बन गई थी. शिक्षामित्र अपनी जान बचाकर इधर-उधर भागने लगें. आगे उन्होंने बताया कि सर्वप्रथम उनके संगठन “गोप गुट” ने पहल करते हुए बाकी बचे करीब 1000 नियोजित शिक्षकों के साथ आधी रात में बैठक करके सर्वसम्मति से प्रदीप कुमार “पप्पू” को शिक्षामित्रों का संयोजक बनाकर सरकार को मांग पत्र सौंपा था.

Mr. Shivchandra Prasad Naveen, former Secretary of Bihar State Primary Teachers Association "Gopa Gut"

श्री नवीन याद करते हुए बताते हैं कि उस समय श्री मदन मोहन झा, बिहार सरकार के प्रिंसिपल सेक्रेटरी थें. जिसके बाद ही 1 जुलाई 2006 से अनट्रेंड शिक्षामित्रों को 4000 और ट्रेंड शिक्षामित्रों को 5000 मासिक मानदेय किया गया. इसके साथ ही सरकार ने मांग मानते हुए शिक्षामित्रों को 60 वर्ष की उम्र तक नियोजित कर लिया. उन्होंने बताया कि उस समय शिक्षामित्रों का कोई संगठन नहीं था. यह उस समय की सबसे बड़ी जीत थी. श्री नवीन खुद उस समय नियमित शिक्षक के प्रदेश सचिव थें.

अंत में साथियों से इतना ही कहूंगा कि आंखे खोलिये और अपना अच्छा बुरा पहचानिये. आपलोगों को शायद पता भी न हो, या कुछ लोगों को पता भी होगा कि हमारे पूर्वजों ने खून कि होली खेलकर मजदूर हीत की रक्षा के लिए 44 श्रम कानून बनवाये थें. मगर आज वर्तमान की केंद्र सरकार उन सभी कानून को समाप्त कर 4 मजदूर विरोधी कानून बनाना चाहती है. (इसके बारे में अधिक जानकारी के लिए हमारे इस आर्टिकल को पढ़ें-> मोदी सरकार पूर्वजों द्वारा बनवाये श्रम कानूनों को खत्म करने पर आमदा, क्यों).

आज आपको पटना हाई कोर्ट या कहें तो सुप्रीम कोर्ट ने जिस कानून को आधार बना कर “समान काम समान वेतन” का फैसला दिया है. इस शीतकालीन सत्र में उक्त आधार को केंद्र की सरकार वेजेज विल के जरिये समाप्त करने जा रही है. यह बताने का मुख्य उद्देश्य यह है कि इधर बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट में पटना हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देगी उधर मोदी साहब समान वेतन का कानून ही समाप्त कर देंगे.

अब ऐसे में सुप्रीम कोर्ट क्या फैसला देगी? जी कोर्ट केवल आपने कानूनी अधिकारों के रक्षा के लिए है. अब जब कानून ही नहीं होगा तो समान वेतन मिलेगा कैसे?(इसके बारे में अधिक जानकारी के लिए हमारे इस आर्टिकल को पढ़ें-> सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागु करने के बजाय ठेका क़ानून के प्रावधान को ख़त्म कर रही है मोदी सरकार)

अब आप सोच रहें होंगे तो अब करें क्या? इसके लिए हम आपको मुख्यमंत्री पर जूता-चप्पल चलाने की सलाह नहीं देंगे और न ही उनकी किसी सभा में बिना बुलाये जाकर काला झंडा लहराने की सलाह देंगे. आप शिक्षक हैं. हमें नहीं लगता कि यह सब आपको शोभा देता है. आप समाज के पथ-प्रदर्शक हैं. अगर आप ही ऐसा करेंगे तो हमारे बच्चे क्या सीखेंगे? अपनी एकता दिखाने और विरोध करने का और भी तरीका है.

जिसके माध्यम से सरकार को अपनी मांग मनवाने के लिए मजबूर किया जा सकता है. पुरे बिहार के नियोजित शिक्षक काम को रोके बिना काला बिल्ला लगाकर एकता को प्रदर्शित कर सकते हैं और अगर कोर्ट ने निर्णय के मुताबिक 90 दिनों में फैसला लागू नहीं हुआ तो काम का पूर्ण बहिष्कार. अब आप सोचेंगे कि इससे क्या होगा?

इससे तो सरकार कोई कोई फर्क नहीं पड़ेगा. जरूर फर्क पड़ेगा यदि आप सभी 4 लाख शिक्षक काला बिल्ला लगा कर काम करना शुरू कर दें. इसके बाद हमें नहीं लगता कि आपको हड़ताल पर जाने की नौबत भी आयेगी. याद रखें समय बहुत ही कम है और लड़ाई बहुत बड़ी. हम शिक्षक से ही कोई संघ या संघठन है. आप अपने संघ के जनरल बॉडी मीटिंग में सभी के एक मंच पर आने की बात मजबूती से उठाइये. अगर आपका संघ नहीं सुन रहा तो आप खुद समझ जाइये. अब आपको तय करना है कि समान वेतन चाहिए या धोखा.

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