CPIM दिल्ली ने सचिवालय पर किया प्रदर्शन किया, पुलिस के साथ झड़प

नई दिल्ली: कल CPIM दिल्ली राज्य समिति ने दिल्ली सचिवालय पर प्रदर्शन किया. इस प्रदर्शन में बड़ी तादाद में महिलाओं व् बच्चों ने भी हिस्सा लिया. प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व सीपीआई (एम) की पॉलिट ब्यूरो की सदस्या वृंदा करात, के.एम तिवारी, आदि नेतागण कर रहे थे. शहीद पार्क आईटीओ से जैसे ही जुलूस शुरू हुआ पुलिस ने बेरिकेड लगाकर जुलूस को वहीं रोक लिया. जिसके बाद पुलिस के साथ झड़प हुए जिसमें कुछ प्रदर्शनकारियों को चोटे आयीं.

इसके बाद CPIM दिल्ली का जुलुस सभा में तब्दील हो गया. इस सभा को संबोधित करते हुए वृंदा करात ने आरोप लगाया कि देश में व दिल्ली शहर में गरीबों के खिलाफ साजिश की जा रही है और उन्हें मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित किया जा रहा है. उन्होने याद दिलाया कि हर सरकार कि यह ज़िम्मेदारी है कि वह सार्वभौमिक राशन प्रणाली को मुस्तैदी के साथ लागू करे, ताकि सभी जरूरत मंद लोगों को सस्ती दरों पर राशन उपलब्ध कराया जा सके.

उन्होने केजरीवाल सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा की वह आम आदमी की सरकार होने का दावा तो करती है, लेकिन जब उनके लिए राशन उपलब्ध कराने की बात आती है तो उनका रिकॉर्ड भी देश में गरीब विरोधी भाजपा सरकारों से कम नहीं है.

अपने सम्बोधन में कार्यकर्ताओं का बड़े अभियान के लिए आह्वान करते हुए वृंदा करात ने कहा कि देश में लूट का माहौल है और मोदी सरकार बड़े पूँजीपतियों को इस लूट में सहायता कर रही है. दिल्ली पार्टी सचिव के.एम. तिवारी ने कहा कि अपनी इन मांगों को मनवाने के लिए मेहनतकश जनता के सामने संघर्ष के सिवाय कोई रास्ता नहीं है. उन्होने कहा कि इस संघर्ष को आम जनता के बीच ले जाए और स्थानीय स्तर पर राशन अधिकारियों को सबको राशन देने के लिए मजबूर करें. उन्होने दिल्ली के मजदूरों को घोषित न्यूनतम वेतन लागू करने की भी मांग की.सभा के अंत में दिल्ली सचिवमण्डल की तरफ से अनुराग सक्सेना व् आशा शर्मा के अगुवाई में एक प्रतिनिधिमंडल केजरीवाल सरकार को दिल्ली की जनता से संबन्धित मांगों को लेकर ज्ञापन देने गया.
जिसकी प्रतिलिपि नीचे संलग्न है :-
 
सेवा में,                                                                                                      22 फरवरी, 2018
श्री अरविंद केजरीवाल
माननीय मुख्यमंत्री
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली
 
विषय: दिल्ली में सार्वजनिक वितरण प्रणाली तथा न्यूनतम वेतन संबंधी ज्ञापन
आदरणीय केजरीवाल जी,
दिल्ली की जनता को खाद्य पदार्थों, विशेषकर दालों और सब्जियों की कीमतों में लगातार वृद्धि के कारण बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. महंगाई की मार का सबसे बुरा असर मज़दूर वर्ग और अन्य मेहनतकशों पर है. केन्द्रीय सरकार द्वारा खाद्य पदार्थों के वायदा व्यापार को अनुमति देने तथा जमाखोरों व कालाबाज़ारियों के खिलाफ़ सख्त कदम न उठाने ने आग में घी डालने का काम किया है.
खाद्य पदार्थों की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी पर लगाम लगाने में एक सार्वभौमिक सार्वजनिक वितरण प्रणाली की अहम भूमिका हो सकती है. दुर्भाग्यवश पिछले कुछ सालों में सार्वजनिक वितराण प्रणाली का दायरा बढ़ने के बजाए घटा है. 2012-13 में दिल्ली में 34.35 लाख राशन कार्ड थे. 2016-17 में यह संख्या घटकर 19,29,223 रह गई है. आज दिल्ली में राशन के लाभार्थियों की कुल संख्या 72.60 लाख है. यह संख्या खाद्य सुरक्षा कानून के आधार पर केन्द्र सरकार द्वारा दिल्ली में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के कुल लाभार्थियों की अधिकतम संख्या यानि 72.78 लाख के अनुकूल ही है. दूसरे शब्दों में दिल्ली की जनसंख्या का केवल 38 प्रतिशत आज सार्वजनिक वितरण प्रणाली के दायरे में आता है.
राज्य में सार्वजनिक वितरण प्रणाली में ज़रूरी तब्दीलियाँ लाकर जनता को राहत पहुंचाना आज अतिआवश्यक बन गया है। इस संदर्भ में हमारी राय निम्नलिखित हैः
1. कई राज्य सरकारों ने खाद्य सुरक्षा कानून द्वारा राशन के लाभार्थियों को बहुत सीमित करने वाले मापदंडों को स्वीकार नहीं किया है. उलटा वे अपने कोष से खर्चा करके कहीं अधिक संख्या में लोगों को राशन प्रणाली के दायरे में लाए हैं. तामिलनाडू में राशन वितरण प्रणाली को सार्वभौमिक किया गया है और आमदनी के आधार पर किसी को भी इसके दायरे से बाहर नहीं रखा गया. दुर्भाग्यवश आप की सरकार, पूर्व कांग्रेस राज्य सरकार की तरह उन चंद राज्य सरकारों में से है जो सार्वजनिक वितरण प्रणाली के दायरे को बढ़ाने हेतु खर्चा करने को तैयार नहीं है. यह बहुत अन्यायपूर्ण है. इसलिए हम मांग करते हैं कि दिल्ली के सभी परिवारों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के ज़रिए सस्ता राशन उपलब्ध कराया जाए.
2. खाद्य सुरक्षा कानून के पारित होने से पहले अंत्योदया, बीपीएल, झुग्गी व पुनर्वास कालोनी राशन कार्ड धारकों को हर महीने सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से 35 किलो अनाज मिलता था. खाद्य सुरक्षा कानून के तहत जहां अंत्योदया परिवारों को अब भी 35 किलो अनाज मिलता है वहीं प्राथमिकता (भूतपर्व बीपीएल) कार्ड धारकों को केवल 5 किलो प्रति व्यक्ति ही मिल रहा है. इसका परिणाम यह है कि अब 4 व्यक्तियों वाले बीपीएल परिवार को पहले के 35 किलो अनाज की जगह अब केवल 20 किलो मिलता है. अतः उक्त कानून ने ग़रीब परिवारों की खाद्य सुरक्षा बढ़ाने के बजाए उसे कम किया है. तमाम भूतपूर्व बीपीएल, झुग्गी व पुनर्वास कालोनी राशन कार्ड धारकों को पुनः हर महीने 35 किलो अनाज देकर इस अन्याय को समाप्त किया जाना चाहिए.
3. लेकिन प्राथमिकता (भूतपूर्व बीपीएल) परिवारों को 35 किलो अनाज सुनिश्चित करना काफ़ी नहीं है. खाद्य पदार्थों की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी की मार का सामना करने हेतु सार्वजनिक वितरण प्रणाली के ज़रिए चीनी, दाल, खाद्य तेल, नमक आदि वस्तुओं को भी सबके लिए उपलब्ध कराना ज़रूरी हो गया है. केरल, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, त्रिपुरा व राजस्थान जैसे राज्यों ने अलग-अलग मात्रा में यही किया है. आप की सरकार को भी सार्वजनिक वितरण प्रणाली के ज़रिए सस्ती दरों पर चीनी, दाल, नमक, मसाले व खाद्य तेल उपलब्ध करवाने चाहिएं.
4. राशन लाभार्थियों की पहचान करने हेतु लगाई गई मशीनों से संबंधित समस्याओं के चलते कई लोगों को राशन से वंचित रखा जा रहा है. राशन दुकानों में अकसर इंटरनेट कनेक्शन न होने के कारण मशीनों द्वारा लाभार्थियों की पहचान नहीं की जा सकती. लोगों को इंटरनेट के इंतजार में काफी समय गंवाना पड़ता है. इसी तरह यह शिकायत भी काफ़ी सुनने को मिलती है कि मशीनें कार्ड धारकों के अंगूठे के निशान को पढ़ नहीं पाती. हाथ से काम करने वालों के अंगूठे के निशान में तबदीलियां आना स्वाभाविक है. दोनों सूरतों में गरीब लोगों को परेशान होना पड़ता है और उन्हें राशन नहीं मिलत. इस तजुर्बे की रौशनी में लाभार्थियों की फोटो के आधार पर उनकी पहचान करने की प्रणाली को बहाल किया जाना चाहिए.
5. सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए आवंटित राशन के एक बड़ा हिस्से को खाद्य व आपूर्ति विभाग के अफ़सरों तथा राशन दुकान मालिकों की मिलीभगत से कालेबाज़ार में बेचा जाता है. इसके चलते अकसर लोगों को सही मात्रा में राशन नहीं मिलता. कई बार उपलब्ध राशन की क्वालिटी भी बहुत खराब होती है. इसी तरह यह शिकायत बार-बार सुननी पड़ती है कि राशन दुकानों के मालिक नियमित रूप से अपनी दुकानें नहीं खोल रहे. भ्रष्टाचार में लिप्त सभी सरकारी मुलाज़िमों तथा राशन दुकान मालिकों के खि़लाफ़ सख़्त कार्यवाही की जानी चाहिए ताकि लोगों को सही मात्रा में अच्छी क्वालिटी का राशन उपलब्ध हो पाए.
6. आवश्यक वस्तु अधिनियम का लागू न किया जाना ज़रूरी वस्तुओं की कीमतों में बड़ी बढ़ोतरी का एक प्रमुख कारण है. आपको आवश्यक वस्तु अधिनियम को सख़्ती से लागू करके जमाख़ोरों व कालाबाज़ारियों के खि़लाफ़ उपयुक्त कदम उठाने चाहिए.
अतः हम मांग करते हैं किः
क) सबको सार्वजनिक वितरण प्रणाली के दायरे में लाओ.
ख) सभी परिवारों को प्रतिमाह 2 रुपये प्रतिकिलो की दर पर 35 किलो अनाज उपलब्ध कराओ.
ग) सार्वजनिक वितरण प्रणाली के ज़रिए सस्ती दरों पर चीनी, दाल, मसाले, नमक और खाद्य तेल उपलब्ध कराओ.
घ) राशन की अच्छी क्वालिटी तथा राशन दुकानों के समय से खुलना सुनिश्चित करो.
च) राशन लाभार्थियों की पहचान करने में मशीनों का इस्तेमाल बंद करो.
छ) जमाख़ोरों व कालाबाज़ारियों के खि़लाफ़ सख्त कदम उठाओ.
हम आपका ध्यान दिल्ली के मजदूरों के हालात की ओर भी आकर्षित करना चाहते है जो इस प्रकार हैः
1) आपकी सरकार ने मार्च 2017 में न्यूनतम वेतन में 37 प्रतिशत बढ़ोतरी करने का स्वागत योग्य कदम उठाया था. लेकिन दुर्भाग्यवश वेतन की ये नई दरें अभी भी निजी क्षेत्र के संस्थानों में कार्यरत मजदूरों व कर्मचारियों को नहीं मिल रही. यही हाल सरकारी क्षेत्र में कार्यरत ठेके के मजदूरों का भी है. न्यूनतम वेतन का मामला मार्च 2017 से ही दिल्ली उच्च न्यायालय में लंबित है. आपकी सरकार ने इस मामले को जल्दी तय करवाने हेतु कोई पहलकदमी नहीं की है. ना ही आपकी सरकार पुराने न्यूनतम वेतन की दरों को लागू करवाने में कोई रूचि रखती है. इसके चलते दिल्ली के बहुमत मज़दूरों को 5000 से 7000 तक के वेतन पर काम करना पड़ रहा है.
2) एक अन्य अहम मुद्दा मज़दूरों की सुरक्षा का है. औद्योगिक व गैर-औद्योगिक संस्थानों में से अधिकतर न्यूनतम सुरक्षा के मापदंडों को लागू नहीं करते. सरकार व उसका श्रम विभाग भी इस अहम पहलू की अनदेखी करते हैं. इस अपराधिक अवहेलना के चलते पिछले महीने घटित बवाना अग्नि कांड जिसमें 19 मजदूर मारे गए जैसी घटनाएं होना लाज़मी है. पिछले एक वर्ष में कई मज़दूर बिना सुरक्षा उपकरणों के सीवर साफ़ करते समय मारे गए हैं.
3) बडे पैमाने पर औद्योगिक व गैर-औद्योगिक संस्थानों में मज़दूरों को बिना ओवर-टाइम दिए 12-13 घंटे काम करने पर मजबूर किया जा रहा है. इनके बडे हिस्से को प्रोविडेंड फंड व ईएसआई जैसी सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हैं. दिल्ली सरकार इन हालात को बदलने के लिए कोई कदम नहीं उठा रही है.
4) विधान सभा चुनाव के दौरान आपने स्थायी स्वरूप के काम पर कार्यरत ठेका मज़दूरों को पक्का करने का वायदा किया था, मगर आपकी सरकार ने इस दिशा में कोई भी कदम नहीं उठाया है. इसके चलते दिल्ली में निजी क्षेत्र में कार्यरत मज़दूरों के बडे़ हिस्से को ठेके पर काम करना पड़ता है. इससे भी बुरा तो यह है कि राज्य सरकार के तहत कार्यरत मज़दूरों और मुलाज़िमों का 50 प्रतिशत से अधिक भी ठेके पर काम करता है.
उक्त हालात को स्वीकार नहीं किया जा सकता, अतः हम मांग करते हैं किः
क) घोषित न्यूनतम वेतन का भुगतान सुनिश्चित करो.
ख) दिल्ली उच्च न्यायालय में लंबित न्यूनतम वेतन संबंधी मामले में सकारात्मक हस्तक्षेप करो.
ग) सभी मज़दूरों को प्रोविडेंड फंड व ईएसआई जैसी सुविधाएं सुनिश्चित करो.
घ) बिना ओवर-टाइम दिए 8 घंटे से अधिक काम करवाने पर रोक लगाओ.
च) औद्योगिक इकाईयों, दुकानों, होटलों व अन्य संस्थानों में उचित सुरक्षा प्रबंध सुनिश्चित करो.
छ) स्थायी स्वरूप के काम पर कार्यरत ठेका मज़दूरों को पक्का करो. समान काम के लिए समान वेतन दो.
हम उम्मीद करते हैं कि आप उक्त मांगों पर गंभीरता से विचार करके सकारात्मक कदम उठाएंगे.
सधन्यवाद,
भवदीय

(के.एम. तिवारी) सचिव, सीपीआई(एम) की दिल्ली राज्य समिति.

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