एक याचिका की सुनवाई करते हुए माननीय दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि एक उद्योग जो अपने श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी नहीं देता है, को “जारी रखने का कोई अधिकार नहीं है”, न्यायालय ने कहा है कि इस तरह की मजदूरी का भुगतान “गैरकानूनी और निष्पक्ष” के रूप में नहीं किया जा रहा है. मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी दिए बिना उन्हें रोजगार एक आपराधिक अपराध का गठन होता है जिसके लिए न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 के तहत दंडात्मक प्रतिबंध प्रदान किए गए हैं.
उक्त आदेश माननीय कोर्ट ने एक माली श्री गीतम सिंह के याचिका कि सुनवाई करते सेंट्रल सेक्रेटेरिएट क्लब, तालकटोरा प्रबंधन के द्वारा दिल्ली सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन देने का आदेश जारी किया. न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर ने क्लब में काम करने वाले माली श्री गीतम सिंह को फरवरी 1989 से सितम्बर 1992 तक के न्यूनतम मजदूरी में कम दी गई राशि का भुगतान करने का आदेश किया. जो कि लेबर कोर्ट के आदेश के अतिरिक्त है, साथ ही अक्टूबर 1992 और सितंबर 1995 के बीच की अवधि के लिए श्री सिंह को 15,240 का भुगतान करने का निर्देश दे दिया.
यह कहा गया है कि याचिकाकर्ता को दी जाने वाली कुल राशि को भुगतान करने की तारीख तक, 16 जुलाई, 2004 को लेबर कोर्ट के फैसले की तिथि से 12% प्रतिवर्ष के साथ दिया जाएगा. उक्त भुगतान आदेश के पारित होने के चार सप्ताह के भीतर किया जाएगा.
कोर्ट ने कहा कि “एक मजदूर को न्यूनतम मजदूरी का भुगतान गैरकानूनी और गैर-कानूनी है,” इस चर्चा में कोई संदेह नहीं है कि न्यूनतम मजदूरी कामगारों की मूल पात्रता है, और एक उद्योग जो मजदूरों को उन्हें न्यूनतम वेतन दिए बिना रोजगार देता है, उन्हें जारी रखने का कोई अधिकार नहीं है.
क्लब प्रशासन ने लेबर कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी. जिसके बाद क्लब ने श्री सिंह के दावों का खंडन करते हुए कहा था कि वह कोई इंडस्ट्री नहीं है और उसकी सदस्यता सिर्फ सेंट्रल सेक्रेटेरियट के कर्मचारियों तक सीमित है. मगर याचिकाकर्ता के वकील श्री अनुज अग्रवाल के दलील को स्वीकार करते हुए माननीय कोर्ट ने क्लब की दलीलें ठुकरा दीं. जिसके बाद क्लब प्रशासन द्वारा लेबर कोर्ट के फैसले को नहीं मानकर हाई कोर्ट में चुनौती देने के कारण प्रबंधन को 50 हजार का जुर्माना भी लगाया.
अदालत ने कहा, ‘एक कर्मचारी को न्यूनतम मजदूरी नहीं देना कानूनन अनुचित और अक्षम्य है. इस चर्चा में किसी भी तरह के संदेह की गुंजाइश नहीं होनी चाहिेए कि न्यूनतम मजदूरी किसी भी कर्मचारी का मौलिक हक है और ऐसे उद्योग, जो कर्मचारियों को बिना उन्हें न्यूनतम मजदूरी दिए काम पर रखते हैं, उन्हें चालू रहने का कोई हक नहीं है.
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