केजरीवाल दिल्ली सरकार वायु प्रदूषण के लिए ही जिम्मेवार या फिर

दिल्ली शहर में आज वायु प्रदूषण के स्तर में बढ़ोतरी के बाद दिल्ली सरकार की आँखे खुल गयी है. इसके बाद दिल्ली सरकार कभी आज वैक्यूम क्लीनिंग, प्रमुख सड़कों पर पानी के छिड़काव, निर्माण स्थलों पर धूल में कमी लाने और पत्तों को जलाने पर प्रतिबंध लगाने समेत कई अन्य उपाय लगाने में व्यस्त है.

मगर जब तक असली मुद्दे की जड़ तक नहीं जायेंगे तब तक हमें नहीं लगता की सुधार की कोई गुंजाइस है. ऐसा नहीं है कि कोई यह आज हुआ है. बल्कि हर साल दीवाली के बाद हम इस तरह के समस्या से जूझते है. एक दूसरे को कोसते है. फिर चुप हो जाते हैं.

पिछले कई महीनों से पुरे दिल्ली में जिधर देखों उधर ही तोड़-फोड़ का काम चल रहा है. एक सड़क बनती नहीं है कि दूसरी तोड़ दी जाती है. उससे उठने वाला धूलकण सीधे हमारे फेफड़े में जाता है. इसको अरविन्द केजरीवाल, मनीष सिसोदिया या फिर मोदी जी कैसे समझ सकते हैं. हमें नहीं लगता कि दिल्ली की सड़को पर उनको गाड़ी के सीसे खोल कर चलने की जरुरत है.

अभी हाल ही में पब्लिक ट्रांसपोर्ट के रूप में प्रयोग किया जाने वाला दिल्ली मेट्रो ने एक साल के भीतर दूसरी बार किराया वृद्धि किया. नवभारत टाइम्स के अनुसार दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कहा कि मेट्रो बोर्ड में 16 निदेशकों में से दिल्ली सरकार के 5 निदेशक हैं.

जिन्होंने मेट्रो भाड़ा बढ़ोतरी का पुरजोर विरोध किया मगर केंद्र सरकार ने एक न सुनी. अब मेट्रो ने पिछली बार जब भाड़ा बढ़ाया था तो यात्रियों की संख्या में कमी आयी थी. अब स्वभाविक सी बात है कि वो यात्री पैदल नहीं चलेंगे बल्कि अपना निजी वाहन इस्तेमाल करेंगे.
जनसत्ता के अनुसार अभी दीपावली में जब सुप्रीम कोर्ट ने पटाखा चलाने पर बैन लगा दिया था तब मशहूर लेखक चेतन भगत ने नाराजगी जाहिर करते हुए इसको धार्मिक मुद्दा बताते हुए कहा था ‘हिन्दुओं के त्योहारों के साथ ही ऐसा क्यों?’
कुछ भक्तों ने तो इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के गेट पर जाकर आतिशबाजी तक कर दी थी. अमर उजाला ने लिखा कि सुप्रीम कोर्ट के बैन के बावजूद जमकर हुई आतिशबाजी, प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंचा.
यह सब बातों का वायु प्रदूषण से कुछ न कुछ लेना देना तो जरूर है. अब बूंद बूंद कर ही घड़ा भरता है. कोई यह नहीं कह सकता की केवल दिल्ली के वायु प्रदूषण के लिए केजरीवाल सरकार ही जिम्मेवार है, जबकि दिल्ली में ही भारत सरकार के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और महामहिम राष्ट्रपति हो या फिर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस भी रहते हैं.
कल तक दिल्ली को दिलवालों का शहर कहा जाता था मगर आज डेंगू, चिकनगुनिया से लेकर कैंसर पैदा करने वाला शहर किसी और ने नहीं बल्कि हमने और आपने ही बनाया है.
ऐसा करके हम केवल आज के लिए ही मुश्किल खड़ी नहीं कर रहे बल्कि आने वाले नश्ल को भी तबाह कर रहे है. आज हम एक पेड़ नहीं लगा सकते मगर सौ पेड़ जितना कार्बनडाईऑक्साइड जरूर छोड़ रहे हैं. हम ज्यादा कुछ नहीं कर सकते मगर अपनी गाड़ी के साइलेंसर को तो ठीक करा ही सकते हैं.
पब्लिक प्लेस पर बीड़ी और सिगरेट पीने वाले को रोक तो सकते है. इसके आलावा भी बहुत कुछ है जिसको देखकर हम आप मुंह फेर लेते है. जिम्मेदार नागरिक बने फिर ये प्रदूषण क्या बड़ी चीज है.

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