केंद्र सरकार कारखाना अधिनियम 1948 में संशोधन क्यों कर रही?

केंद्र की मोदी सरकार कारखाना अधिनियम 1948 में संशोधन करने जा रही. यह कारखाना अधिनियम 1948 क्या है? इस कानून में क्या बदलाव होगा और उससे एक मजदूर के काम-काज पर क्या फर्क पड़ेगा? इसकी पूरी जानकारी दें जा रहे हैं.

कारखाना अधिनियम 1948 क्या है?

कारखाना अधिनियम,1948 के अनुसार ‘कारखाने’ का अर्थ है ” कोई परिसर जिसमें वह क्षेत्र शामिल है जहां बिजली से चलने वालो कारखाने में 10 मजदूर और बिना बिजली से चलने वाला कारखाने में 20 मजदूर काम करता है तो वह कारखाना अधिनियम के अंतर्गत आता है. जिसको वर्तमान केन्द्र सरकार बदलकर 10 की जगह 20 और 20 की जगह 40 करने जा रही है.

काम के घंटे नियम हिंदी में (working hours rules in hindi)

कारखाना अधिनियम के अनुच्छेद 56 में यह प्रावधान रहा है कि किसी भी मजदूर को भोजनावकाश के अवधि को मिलाकर 8 घंटे की काम लिया जा सकता है. इस कानून के अनुसार व्यस्क आदमी (जिन्होने 18 वर्ष की आयु पूरी कर ली हो) के काम का घंटा सप्ताह में 48 घंटे और एक दिन में 9 घंटे से अधिक नही होना चाहिए. अगर किसी मजदूर/कर्मचारी से प्रतिनिद 9 घंटे काम लिया जा रहा है तो वह मजदूर सप्ताह में 6 घंटे ओवर टाईक का हकदार है.

अधिनियम की धारा 51 के अनुसार ओवरटाईम किसी भी शर्त पर एक सप्ताह में 24 घंटे से ज्यादा नही होना चाहिए. इस अधिनियम 59 के अनुसार कोई मजदूर किसी भी दिन किसी भी एक दिन या अधिक दिन किसी कारखाना में काम करता है. किसी भी सप्ताह में चालिस घंटे, वह ओवरटाईम के संबंध में, अपने सामान्य दर की दो बार की दर से मजदूरी का हकदार होगा, यानि की दोगुणी मजदूरी.

सरकार कारखाना अधिनियम 1948 में क्या बदलाव?

अब इस कानून में नई सरकार संशोधित करने जा रही है. उस संशोघन के अुनसार, यदि राज्य सरकार संतुष्ट है, तो काम के घंटों का विस्तार 10.5 से 12 तक किया जा सकता है. अभी के कानूनी प्रावधान के अनुसार ऐसा करने के लिए कारखाना निरिक्षक तभी अनुमति दे सकता है, जब सभी सम्बन्धित पक्षों को शामिल करके निरिक्षण करने के बाद पाता है कि यह प्राकृतिक रूप से आवश्यक है. मगर अब निरिक्षक के अनुमति के बगैर ही काम के घंटे बढ़ाने का हक मालिकों को दिया जा रहा है. इसका मतलब है कि एक तरह से मालिकों को छूट दी जा रही है कि मजदूरों को बिना ओवर टाईम दिये अपने आवश्यकता अनुसार 10-12 घंटे काम ले सकते है.

महिला मजदूर पर भी असर पडे़गा?

अभी तक अधिनियम अनुच्छेद 66 के प्रावधान के अनुसार किसी भी महिला मजदूर को कारखाना संध्या 7 बजे से सुबह के 6 बजे बीच काम करवाने की अनुमति नहीं है. मगर अभी के कानून के बदलाव के अनुसार महिला वर्करों का रात्रि पाली में काम लेने की छुट दे दी जायेगी.

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क्या श्रम कानून के उल्लंधन के खिलाफ कोर्ट जा सकेगें?

अब बदलाने कानून के अनुसार सरकार के लिखित इजाजत के बिना श्रम कानूनों के उल्लंघन के मामले में किसी भी शिकायत पर कोई भी अदालत संज्ञान नही ले सकती है.

मजदूरों पर क्या प्रभाव

अब आप सोच रहे होगें कि इससे मजदूरों पर क्या प्रभाव होगा. तो आपकी जानकारी के लिए बता दूॅं कि सन 2014 में प्रकाशित, वर्ष 2011-2014 की कारखानों की वार्षिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार पूरे देश के कुल 1,75,710 कारखानों में से 1,25,301 यानि 71.31 प्रतिशत कारखानों में कम मजदूर रखे गये हैं. इस कानून के बदलाव के बाद उनमें से अधिकांश कारखाने के मालिक 40 से कम मजदूर को रखना पसंद करेंगें और उक्त बदलाव के कारण 36,10,056 ठेका मजदूरों सहित कुल 1,34,29,956 मजदूरों में से अधिकांशतः कारखाना कानून के दायरे से ही बाहर हो जायेगें.

जिसके बाद शुरू होगा उनके शोषण का सिलसिला, जिसके विरोध में मजदूरों के हक के लिए कानून बदले जाने के कारण कोई भी कोर्ट सुनवाई नही कर सकेगा. अब देखने की बात यह है कि इससे समाज में क्या बदलाव आयेगा. जब मजदूरों के पास अपने शोषण के खिलाफ न्याय पाने के लिए न कोई कानून होगा और न कोर्ट जा सकता है तो ऐसी स्थिती में आत्यहत्या करने या बंदुक उठाने के सिवा कोई चारा बचेगा क्या? याद रखे कि यह कानून हम मजदूरों के हक़ में हमारे पूर्वजों ने संघर्ष और क़ुरबानी देकर बनवायी है. क्या आप इसको ऐसे ही बदल जाने देंगे.

यह तो केवल एक कानून के बारे में जानकारी है. आगे भी जानकारी देने की कोशिस की जायेगी. उम्मीद है आप सभी का यह लेख पसंद आये. अपने साथियों के साथ शेयर करें. अगर कोई शिकायत या सुझाव हो तो कमेंट बॉक्स में अवश्य लिखे.

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