डिग्री देनेवाला CBSE Law नही मानता, कर्मचारी शोषण के खिलाफ संघर्ष पर

 नई दिल्ली: CBSE अनुबंध कर्मचारी लगभग 2 वर्षों से न्याय पाने के के लिए दर-दर भटक रहे हैं, परंतु आजतक कोई हल नहीं निकल पाया, जिसके कारण आज भी संघर्षरत है. नौकरी से निकाले 47 अनुबंध कमचारियों ने सीबीएसई में कई वर्षों से काम किया है और वे लोगों को प्रत्यक्ष रूप से सीबीएसई ने ही साक्षात्कार लेकर भर्ती किया था. कर्मचारियों में दो ग्रुप है-

CBSE देश का Law नही मानता

एक एमटीएस और दूसरा एमटीए यानी कंप्यूटर असिस्टेट. विगत 4 साल पहले सीबीएसई प्रशासन ने अचानक बिना जानकारी दिये बीच में धोखे से न्यूग्रो साल्यशन नाम की एजेसी ले आई और कर्मचारियों को उनके रिकॉर्ड में दिखा दिया. जिसका कर्मचारीगण नौकरी न चली जाए इसीलिए विरोध नही कर पाये. मगर जब कर्मचारियों को तन्ख्वाह समय पर न मिलने लगा, कार्यदिवस बढ़ाकर 5 से 6 दिन का कर दिया गया.

यहाँ तक कि दसवीं बारहवीं की बार्ड परीक्षा के समय रात-रात भर काम बिना किसी ओवरटाइम के करवाने लगे. इसके आलावा अगर इन सब बातों के नदर अंदाज भी कर दें तो मेहतन के पैसे का पीएफ हर महीने सैलरी काटे तो जाते थे परतु 7-8 महीन बाद तक भी कर्मचारियों को पीएफ नंबर नहीं दिया गया.

कर्मचारी शोषण के खिलाफ संघर्ष पर

जब कर्मचारी इसके बारे में पूछताछ के लिए सीबीएसई प्रशासन के पास जाते तो अधिकारी बुरी तरह से झिड़कते हुए कहते कि तुम तो अब हमारे कर्मचारी हो ही नही, इसके लिए अपने एजेंसी से बात करो. इसके बाद अगर कोई कर्मचारी एजेंसी से बात करता तो उसका आदमी कहता कि तुम सीबीएसई से बात करो. दोनों एकदूसरे पर ब्लेम थोप कर अपनी अपनी जिम्मेवारी से बचने को कोसिस करते.

आखिर जब शोषण हद से बढ़ गया तो कर्मचारियों ने सीटू के सहयोग से संगठन बनाना का फैसला लिया. जिसके बाद उपरोक्त सभी समस्यायों कि लिखित शिकायत यूनियन ने आरएलसी (रीजिनल लेबर कमीशन) ऑफिस में लगाई.

जहां से इन दानोंपर (सीबीएसई प्रशासन एवं एजेंसी) पर दबाव बढ़ने लगा. जिसके तुरंत बाद यूनियन ने एक शिकायत पीएफ कमिश्नर कार्यालय में भी लगा दिया. जिसके बाद प्रबंधन ने आनन फानन में पीएफ का खाता खुलवाया गया. इसके तुरन्त बाद कर्मचारियों को पक्का करने का भी केस लगा दिया गया. फिर क्या था सीबीएसई प्रशासन द्वारा रंजिशपूर्ण कारवाई करते हुए न्यूग्रो एजेंसी को हटाकर नया ठेकेदार नेहा एवियेशन को लाया गया.

CBSE ठेकेदार को 20 हजार रूपये देने की बात लिखी

जिसके बाद नये ठेकेदार ने शर्ते रखी की जिसको जोवाइन करना है उसको 3 हजार रुपया रजिस्ट्रेशन फ़ीस के साथ सादा स्टाम्प लगा पेपर पर साईन के साथ सेवा शर्त, जिसमे कर्मचारी के नौकरी छोड़ने के समय ठेकेदार को 20 हजार रूपये देने की बात लिखी थी.

जिसको कर्मचारियों ने मिलकर विरोध किया. जिसके फलस्वरुप सीबीएसई प्रशासन ने बागी कर्मचारियों को गेट से ऑफिस में घुसने से रोक लगा दी. या यूँ कहें कि नौकरी से फायर कर दिया. इससे रुष्ट कर्मचारीगण गेट के बाहर ही धरना पर बैठ गए. जो कि लगभग 10 महीने तक चला. इस धरना के दौरान सीबीएसई के अनुभाग अधिकारी श्री सुरेश वर्मा ने तो धरना स्थल पर आकर यहां तक कह दिया कि भले ही सीबीएसई का एक-एक ईंट बिक जाये मगर हम तुमलोगों को नौकरी पर वापस नही रखेंगे. उनके तानासाही का अंत यहीं नही हुआ बल्कि धरना स्थल पर शौच और पानी इत्यादि के लिए भी गेट के अंदर आने पर रोक लगा दिया गया.

जिसके बाद से मजबूरन महिलाकर्मियों आंदोलनकारियों को खुले में शौच आदि के लिए जाने की विवश हो गई. इसके बाद भी बेशर्म अधिकारियों को शर्म न आई तो पुलिस की मदद से कई बार कर्मचारियों को धरना स्थल से उठाने का प्रयास किया. मगर बहादुर कर्मचारी कहाँ डरने वाले थे. बल्कि कई बार पुलिस के ज्यादती के खिलाफ थानेदार का घेराव तक कर दिया. आखिर पुलिस ने पीछे हटने में ही अपनी भलाई समझी. आखिर क्यों न हो कर्मचारीगण कानून के तहत ही तो धरना पर बैठे थे. इस धरना के दबाव से 5 एमटीएस कर्मचारियों को मजदूर के पद पर बहाल कर लिया गया.

इधर टर्मिनेशन, पर्मानेंसी का केस करकरदुमा कोर्ट में विचाराधीन है. माननीय कोर्ट ने अभी तक कर्मचारियों के पक्ष में 2 फैसले दिये कि यदि सीबीएसई को कर्मचारी की जरूरत होगी तो इन्ही 47 कर्मचारियों में से सिनियरिटी के हिसाब से नौकरी पर वापस लिया जाए. मगर मगरूर प्रबंधक पीछे के रास्ते भर्ती कर कोर्ट के आर्डर का नाफ़रमानी कर रहा है. इतना ही नही बल्कि अभी एक महिला कर्मचारी जो कि मातृत्व अवकाश से वापस ड्यूटी जोवाइन करने गयी तो यह कहकर वापस लौटा दिया गया कि अभी हमें वर्कर की जरूरत नही है.

यह जानकर आश्चर्ज होगा कि आईआरसीटीसी की तरह ही न तो सीबी के पास ठेका कानून के तहत न तो लेबर विभाग में रजिस्ट्रेशन था और ही ठकेदार के पास लाइसेंस ही था. जो कि आरटीआई से मामला उजागर होने के बाद जल्दबाजी में रजिस्ट्रेशन और लाइसेंस लिया गया.

अभी हाल ही में नोयडा में ऐसी तरह का एक मामला प्रकाश में आया था कि मातृत्व अवकाश (मेटरनिटी लीव) मांगने पर एक कंपनी ने अपनी मानव संसाधन अधिकारी को नौकरी से निकाल दिया. मामले में श्रम विभाग ने कंपनी को नोटिस जारी किया था , जिसमें कहा गया है कि महिला को मातृत्व हित लाभ के रूप में एक लाख 60 हजार रुपये दिए जाएं.

यह मामला सेक्टर-63 की रेडियस सिनर्जी इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड कंपनी का है. ‘मैटरनिटी बेनिफिट ऐक्ट 1961 के सेक्शन 12 में महिलाओं को उस दौरान सुरक्षा देने का प्रावधान है.’ इसमें एक और जुड़ गया है. एक तरह से यूँ कहें की पुरे देश को डिग्री देने वाला सीबीएसई खुद अनपढ़ की भांति न तो भारत का एक भी कानून न तो पढ़ना चाहता है और न ही मानता है. अब ऐसे में कर्मचारियों से जिद्द के आगे उनका गरूर टूटेगा और आज न कल खुद कोर्ट का डंडा भी उनको कानून का पाठ पढ़ायेगा.

यह लेख कश्मीरी, भूतपूर्व अनुबंध कर्मचारी, सीबीएसई के सहयोग से लिखी गई है.

यह भी पढ़ें-
Share this

Leave a Comment