School मजदुर वर्ग का बड़ा मुद्दा, शायद ही किसी का इस पर ध्यान गया हो

Blog: हर माता-पिता की ख्वाहिश होती है कि उनके बच्चे उनसे ज्यादा शिक्षित बनें. इसके लिए पेरैंट्स उन्हें अच्छे से अच्छे स्कूल में पढ़ाना चाहते हैं. लिहाजा, पेरैंट्स इसके लिए कोई भी कीमत यहां तक कि अपनी निजी जरूरतों को भी किनारे करके चुकाने के लिए तैयार रहते हैं और इसी का फायदा उठा रहे हैं प्राइवेट स्कूल.

School मजदुर वर्ग का बड़ा मुद्दा

स्कूलों की मनमानी का आलम यह है कि किसी ने फीस में मोटी बढ़ोत्तरी कर दी है तो किसी ने यूनिफॉर्म में मामूली फेरबदल कर पेरैंट्स को बच्चे के लिए नई यूनिफॉर्म भी खरीदने को विवश कर दिया है. किताबों के सिलेबस में भी मामूली बदलाव से नई क्लास के लिए नई किताबें खरीदनी होंगी. दूसरे शब्दों में School मजदुर वर्ग का बड़ा मुद्दा है.

कोई स्कूल ट्यूशन फीस के नाम पर तो कोई एनुअल चार्जेज के नाम पर फीस बढ़ा बैठा है. ट्रांसपोर्टेशन चार्ज में भी हर साल बढ़ोत्तरी हो रही है. एक अनुमान के मुताबिक हर अभिभावक की जेब पर प्रति बच्चे के हिसाब से कम से कम 40 से 60 हजार रुपए तक का अतिरिक्त एकमुश्त बोझ एक महीने के भीतर है लेकिन प्राइवेट एजुकेशन सैक्टर बेलगाम है. केंद्र सरकार और राज्य प्रशासन भी प्राइवेट स्कूलों की मनमानी पर शिकंजा कसने में नाकाम हैं.

हर माता-पिता की ख्वाहिश होती है कि उनके बच्चे उनसे ज्यादा शिक्षित बनें. इसके लिए पेरैंट्स उन्हें अच्छे से अच्छे स्कूल में पढ़ाना चाहते हैं. लिहाजा, पेरैंट्स इसके लिए कोई भी कीमत यहां तक कि अपनी निजी जरूरतों को भी किनारे करके चुकाने के लिए तैयार रहते हैं और इसी का फायदा उठा रहे हैं.
प्राइवेट स्कूल स्कूलों की मनमानी का आलम यह है कि किसी ने फीस में मोटी बढ़ोत्तरी कर दी है तो किसी ने यूनिफॉर्म में मामूली फेरबदल कर पेरैंट्स को बच्चे के लिए नई यूनिफॉर्म भी खरीदने को विवश कर दिया है. किताबों के सिलेबस में भी मामूली बदलाव से नई क्लास के लिए नई किताबें खरीदनी होंगी.
कोई स्कूल ट्यूशन फीस के नाम पर तो कोई एनुअल चार्जेज के नाम पर फीस बढ़ा बैठा है. ट्रांसपोर्टेशन चार्ज में भी हर साल बढ़ोत्तरी हो रही है. एक अनुमान के मुताबिक हर अभिभावक की जेब पर प्रति बच्चे के हिसाब से कम से कम 40 से 60 हजार रुपए तक का अतिरिक्त एकमुश्त बोझ एक महीने के भीतर है लेकिन प्राइवेट एजुकेशन सैक्टर बेलगाम है. केंद्र सरकार और राज्य प्रशासन भी प्राइवेट स्कूलों की मनमानी पर शिकंजा कसने में नाकाम हैं. पेरैंट्स डर से स्कुल का शिकायत कर नही सकते क्योकि उनके बच्चे को उसी स्कुल में पढ़ना हैं, बाद में कही स्कूल बाले बच्चे को हानि न पहुंचाए.
ऐसे भी पुरे देश में जिस तरह मंहगाई और बेरोजगारी का माहौल है, वह किसी से छुपा नही है. सरकारी न्युक्ति पर रोक लगी हुई है. सरकार निजी फायदे के लिए हर विभाग से लेकर छोटे-बड़े तमान कल कारखानों से लेकर अब तो स्कुल कॉलेज तक में ठेका पर कर्मचारी रखें जाने का चलन सा हो गया है. पुरे देश की 1 करोड़ 30 लाख के आबादी में लगभग 49 करोड़ के आसपास कर्मचारी हैं. जिसमें कि केवल 1 करोड़ 25 लाख सरकारी पद जिसमें की 69 लाख ठेका कर्मचारी ही हैं.
आज एक ओर एमबीए/एमसीए किये हुए लोगों को ठेका पर 12 से 15 हजार में काम करना पड़ता हैं. अब चाहे वह नोटबंदी हो, बैंकों का सर्विस चार्ज बढ़ाना या प्राइवेट स्कुल की मनमानी, इस सबका सबसे ज्यादा असर मजदूर/वर्कर को पड़ता हैं. अब सोचिये की 10 से 15 हज़ार महीने में जो सरकार द्वारा न्यूनतम वेतन तय किये जाते हैं.
वर्कर इस सैलरी के हिसाब से न तो  EWS कैटेगरी के अन्तर्गत आता और न ही प्राइवेट स्कुल के फ़ीस देने के लिए हिम्मत जुटा पाता. अब सोचिये की जिसके 8 हजार रूपये मासिक पर 8 घण्टे काम करवाया जाता हो. शायद वह तो भरपेट रोटी भी नही खा पता होगा. फिर बच्चे की शिक्षा तो दूर की बात हैं.
ऐसे में केवल सरकारी स्कुल ही एकमात्र आसरा बचता हैं. जिसमे लोग खुद के बच्चों को भेजना तो नही चाहते और न ही भेजते हैं मगर आपको सलाह जरूर दे देंगे. आज जिसके पास पैसा हैं, वह तो अपने बच्चों को प्राइवेट स्कुल में ही पढ़ायेगा. ऐसे में अगर कोई वर्कर अपने या साथियों की क़ानूनी मांग के चलते कंपनी द्वारा गैर क़ानूनी ढंग से नौकरी से निकल दिया जाता है, तो क्या कोई ऐसा कानून हैं कि उसके बाद भी उस मजदुर/वर्कर के बच्चे को शिक्षा का अधिकार मिले?
नही हैं न, मतलब “करे कोई भरे कोई”, गलती कंपनी या सरकार कि भविष्य बर्बाद हो देश के आने वाले कल का. ऐसे में मजदुर आवाज उठने से डरेगा ही, अगर उसके ऊपर परिवार की जिम्मेवारी हो, अपने बच्चे के भविष्य की चिंता हो. आज मजदुर वर्ग का यह बहुत बड़ा मुद्दा हैं मगर शायद ही किसी मजदुर संगठन का इसपर ध्यान गया हो या मांग की  हो.
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1 thought on “School मजदुर वर्ग का बड़ा मुद्दा, शायद ही किसी का इस पर ध्यान गया हो”

  1. Sir, प्राइवेट स्कूल अभिभावकों से फीस तो पूरा वसूल करते हैं लेकिन अपने टीचर्स को पूरा वेतन नही देते। मजबूरी में उनको कम वेतन में ही काम करना पड़ता है। जानकारी का अभाव में ऐसे टीचर्स का शोषण होता रहता है
    आपके ब्लॉग और youtube चैंनल से बहुत जानकारी मिल रही है।

    आपका धन्यवाद

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