स्‍ट्रीट वेंडर्स शहरी अर्थव्‍यवस्‍था के प्रमुख अंग होते, फिर क्यों उजड़ा रहे मोदी जी

अगर आप घर से निकलते है तो सड़क पर आपको हजारो गरीब अपनी रेहड़ी  लिए दिख जायेंगे. जो 45 डिग्री धुप हो या झमझम बरसता पानी या ठिठुरती हुई ठण्ड, यह अपने ड्यूटी पर पुरे मुस्तैद होते है. होंगे भी न कैसे, इनके पेट का सवाल जो है. ऐसा नहीं है कि ये शौक से रेहड़ी लगते है. इनको अपना परिवार पालना होता है. जिसके कारण इस बेरोजगारी के दौर में यह स्वरोजगार के भरोसे जी रहे है. क्या आपने कभी यह सोचा है कि यदि यह नहीं हो तो हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा? अगर नहीं सोचा तो अब सोच कर देखिये.

स्‍ट्रीट वेंडर्स शहरी अर्थव्‍यवस्‍था के प्रमुख अंग होते

अगर किसी रेहड़ी पर 20 रूपये में जो छोले भठूरे मिल जाया करती है उसी को एक रेस्टुरेंट में 100 से 100 रूपये देने पड़ते है. अब हर किसी के बस का तो नहीं कि मंहगे रेस्टुरेंट में जाये, और अगर रेस्टुरेंट में जायेगा भी तो पहले सर्विस टेक्स, तो अब जीएसटी के नाम पर जेब कटेगी सो अलग. इससे साफ है कि आम आदमी के लिए रेहड़ी वाले कितने उपयोगी है.
अक्सर मैं आईटीओ से गुजरता हूँ. पुलिस हेडक्वार्टर के सामने सड़क केे दूसरी तरफ एक बुजुर्ग आदमी का जूस का रेहड़ी लगा रहता था. जो कि आजकल काफी समय से दिख नहीं रहे हैं. मैं कभी-कभी बच्चे जूस पिलाने के लिए रुक जाया करता था. पूछने पर पता चला कि वो बिहार के मधुबनी जिले से हैं और काफी समय से दिल्ली में रहते है.
उनसे पूछा कि क्या यह रेहड़ी लगाने पर पुलिस या एमसीडी वाले परेशान नहीं करते है? उन्होंने मुस्करा कर कहा कि शुरू शुरू में किया था, फिर बाद में हफता बांध दिया तो अब कोई परेशान नहीं करता है. मैंने पूछा कि कितना देना होता है, तो उन्होंने बताया कि रोज का 100 रुपया पुलिस का और 100 रुपया एमसीडी वाले को देना होता है. एक और बात बताया कि कभी कभी एमसीडी का झाड़ू लगाने वाले को भी फ्री में जूस पिलाना पड़ता है.
यह कोई नई बात नहीं है. हर किसी को पता है कि किस हद तक दिल्ली में रेहड़ी वालों से वसूली होती है. जिसका एक बड़ा हिस्सा ऊपर तक पहुंचता है. मगर फिर भी हमें आपको दिखने के लिए हर महीने हजारों रेहड़ी वालों पर पुलिस का डंडा बरसता है. खोमचे फेक दिए जाते है, यूँ कहें कि लूट लिए जाते है. जो पुलिस वाले या एमसीडी वाले ऐसा करते है पता नहीं ऐसा करते हुए उनके हाथ क्यों नहीं कांपते?
लोकसभा ने स्‍ट्रीट वेंडर्स (जीविका सुरक्षा तथा स्‍ट्रीट वेंडिंग विनियम) विधेयक 2012 पारित किया था. विधेयक में स्‍ट्रीट वेंडरों के जीविका अधिकार, उनकी सामाजिक सुरक्षा, देश में शहरी स्‍ट्रीट वेंडिंग का विनियमन तथा इनसे जुड़े मामलों का प्रावधान है. कांग्रेस सरकार के आवास तथा शहरी उपशमन मंत्री डॉक्‍टर गिरिजा व्‍यास ने सदन के विचार के लिए विधेयक प्रस्‍तुत करते हुए कहा कि स्‍ट्रीट वेंडर्स शहरी अर्थव्‍यवस्‍था के प्रमुख अंग होते हैं.
यह न केवल स्‍व-रोजगार का साधन है बल्कि शहरी आबादी को विशेषकर आम आदमी को वहन करने योग्‍य लागत तथा सुविधा के साथ सेवा देना भी है. स्‍ट्रीट वेंडर्स वो लोग होते हैं जो औपचारिक क्षेत्र में नियमित काम नहीं पा सकते क्‍योंकि उनका शिक्षा और कौशल का स्‍तर बहुत ही कम होता है. वे अपनी जीविका की समस्‍या मामूली वित्‍तीय संसाधन और परिश्रम से दूर करते हैं.
दिल्ली प्रदेश रेहड़ी पटरी खोमचा हाकर्स यूनियन के महासचिव कामरेड जगदीश मनोचा ने आरोप लगाया कि रेहड़ी पटरी वालों पर आजकल दिल्ली पुलिस बर्बरता का प्रदर्शन करते हुए उन्हें काम करने से रोक रही है. सर्वोच्च न्यायालय ने 2013 में लोकसभा ने 2014 में कानून पास करके यह प्रावधान किया था कि रेहड़ी पटरी वालों का काम सुचारू रूप से चलाने के लिए टाउन वेंडिग कमेटी द्वारा सर्वे कराकर रेहड़ी पटरी लगाने का सर्टीफिकेट दिया जाय. उन्हें उचित स्थान और सार्वजनिक सुविधायें दी जानी चाहिए.
3-4 वर्ष पहले कानून बन जाने के वावजूद दिल्ली नगर निगम के अधिकारियों ने आज तक न तो टाउन बेंडिग कमीटियां बनने दिया और ना ही कोई सर्टीफिकेट जारी किया. उक्त आदेशों में यह स्पष्ट किया गया था कि जब तक सर्वे और सर्टीफिकेट जारी करने का काम पूरा नहीं हो जाता, किसी भी रेहड़ी पटरी वाले को उसका काम करने से नहीं रोका जा सकता है.
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