एंजल रॉय ने कराटे चैम्पियनशीप में जीता गोल्ड, बेटी को उड़ने दो

Blog – कहते हैं न कि प्रतिभा किसी का मोहताज नहीं होता है. हमारे टाइम में लोग कहते थे कि पढोगे-लिखोगे बनोगे नबाब, खेलोगे कूदोगे होंगे ख़राब..लेकिन वर्तमान परिस्थितियों को देखा जाए तो खेल जगत में देश की अनेकों प्रतिभाओं ने ऐसे नाम कमाया कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना ली है. अब देखिये न, हमने कभी नहीं सोचा था कि यही खेल एक दिन हमारे संघर्ष के काटों भरी राह में चंद पल की ख़ुशी दे जायेगा. उससे भी बड़ी बात कि यह ख़ुशी देने वाला कोई और नहीं बल्कि हमारी 6 साल की बेटी एंजल होगी.

एंजल रॉय ने कराटे चैम्पियनशीप में जीता गोल्ड

आज से एक साल पहले जुडो-कराटे क्लास में नाम लिखवाते समय, हमने सोचा भी न था कि एक साल में ही यह नन्ही सी जान इतना आगे निकल जायेगी. मगर अब हमें यकीन हो गया है कि यह बहुत आगे तक जायेगी. वो जब एक साल की थी तभी से मैरीकॉम के टाटा नमक का टीवी पर ऐड देखकर कहती थी कि “पापा मैंने भी देश का नमक खाया है“. मुझे भी मैरीकॉम की तरह देश का नाम रौशन करना है.

अभी दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में तीन दिवसीय (5,6,7 अप्रैल 2018) आंठवा साउथ एशिया हाकुकाई कराटे चैम्पियनशीप 2018 का आयोजन किया गया था. वैसे तो इस टूर्नामेंट में अलग-अलग उम्र कैटेगरी के प्रतियोगियों के बीच मुकाबला हुआ है. इस टूर्नामेंट के दूसरे दिन हमारी बेटी एंजल रॉय ने अंडर-6 का गोल्ड मेडल झटक लिया.

टोकियो 37वें वर्ल्ड हाकुकाई कराटे चैम्पियनशीप 2018

इसके साथ ही उसका चयन अगस्त में होने वाले जापान, टोकियो 37वें वर्ल्ड हाकुकाई कराटे चैम्पियनशीप 2018 में भारत के तरफ से प्रतिनिधित्व के लिए किया गया है. एंजल ने यह जानकारी करीब दोपहर 2 बजे जैसे ही दी वैसे ही दोस्तों और सगे-संबंधियों को बताया. तभी से बधाई आना शुरू हो गया. आप भी यहां क्लीक कर ऐंजल को बधाई दें सकते हैं.

एंजल  को पिछले साल से ही दिल्ली रत्न अवार्डी सेंसेई नरेश शर्मा (ब्लैक बेल्ट, 5 डान जापान) के पास प्रशिक्षण के लिए भेजना शुरू किया. जय हिन्द जुडो कराटे कलब के तरफ से खेलते हुए अभी तक एंजल रॉय ने मात्र 1 वर्ष में कुल 8 मेडल जीते हैं. जिसमें 2 गोल्ड, 2 सिल्वर और 4 ब्रॉन्ज मेडल शामिल है. जो कि अलग-अलग स्टेट लेवल व नेशनल लेवल टूर्नामेंट में खेलकर जीते हैं. यह एंजेल की अपने उम्र कैटेगरी अंडर-6 का पहला इंटरनेशनल मेडल है. उसको पाकर एंजल काफी खुश है.

वह बड़ा होकर देश के लिए सोना जीतकर अपने दादाजी और गांव धमौन, समस्तीपुर, बिहार का नाम रौशन करना चाहती है.आप यह सोच रहे होंगे कि यह पोस्ट हमने क्यों लिखा? इसका मकसद आप सभी साथियों के साथ ख़ुशी बांटना और एक मैसेज देना है. आज भी समाज में बेटा-बेटी का भेदभाव है. अगर बेटी को मौका मिले तो वह भी आपका उतना ही नाम कर सकती जितना की एक बेटा करता है.

आज किसी भी क्षेत्र में बेटी पीछे नहीं है. उनके पर मत कतरिये, उसको उड़ने दीजिये. अगर इस स्टोरी को पढ़ कर आप में से एक भी माता-पिता का सोच बदलता है तो हमारा प्रयास सफल होगा. हां, एक बात और किसी के प्रति जलन की भावना को प्रतियोगिता के भावना में बदलिए, बहुत फायदा होगा.

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