बिहार नियोजित शिक्षक कोर्ट-कोर्ट खेलते-2 लोग संगठन की ताकत तो भूल नहीं

कल सुप्रीम कोर्ट में बिहार नियोजित शिक्षकों के “समान काम का समान वेतन” मामले की सुनवाई होगी. इससे पहले दिनांक 15 मार्च को केस की सुनाई के बाद नियोजित शिक्षक नेताओं ने कोर्ट से बाहर आकर प्रेस को सम्बोधित करते हुए बताया था कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार के रिपोर्ट को देखकर फटकार लगते हुए खारिज कर दिया है.

बिहार नियोजित शिक्षकों के “समान वेतन” मामले

इसके बाद माननीय कोर्ट ने कहा कि, “ऐसा कोई भी कारण नहीं है कि पटना हाई कोर्ट के फैसले को बदला जाए”. हां नेताओं ने यह जरूर बताया कि एरियर के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार को आपस में फैसला करने के लिए सुनवाई की अगली तारीख 27 मार्च तय किया गया है. जिसके बाद लोगों ने रंग और गुलाल लगाकर अपने खुश का इजहार किया.
आपको याद होगा कि कोर्ट में केस आने के पहले बड़े-बड़े दावे किए गए थे. मगर यह भी सवाल है कि कोर्ट में जाने के बाद जज साहब के हिसाब से ही काम होता है. पटना हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के आर्डर को मानते हुए ही फैसला दिया है, मगर माननीय कोर्ट को अपने ही फैसले को लागू करवाने में सोचना पड़ रहा है. मगर जैसे-जैसे सुनवाई की डेट लम्बी होती जा रही है वैसे-वैसे शिक्षकों नेताओं पर वकील के फ़ीस का बोझ भी बढ़ता जा रहा है.
इसमें कोई दो राय नहीं की उनकी जीत नहीं होगी मगर जीत इतनी आसान भी नहीं होती है. विभिन्न माध्यमों से मिली जानकारी के अनुसार एक-एक पार्टी यानी शिक्षक संघ 1 सुनवाई के लिए 11-12 लाख रूपये के वकील हायर कर रहें है. अब ऐसे इस केस में 13+ लोग पार्टी बने हुए है. इससे अभी तक का खर्च देख लें तो लगभग 1 करोड़ रुपया से ऊपर फूंका जा चूका है.
हमें नहीं लगता कि जज साहब बारी-बारी से सभी वकीलों को सुनते होंगे. अगर हमारी बात मानते और यदि सब मिलकर 2 टॉप वकील ही रखते तो पैसे की बचत भी होती और लड़ाई भी आसान होती. ऐसे भी कहावत तो सुनी होगी “ज्यादा जोगी मठ उजारे”. कल आपने शिक्षक नेता भले ही इस कोर्ट केस में जीत जाए मगर उनको अपने अहम पर जीत हांसिल करने में बहुत समय लगेगा.
आप सोच रहे कि ऐसा क्यों कह रहा हूं? इस लड़ाई में लोग “समान वेतन” पाने से ज्यादा अहम् की लड़ाई में लगे हैं. हर नेताजी यह दाबा कर रहे है कि आप चिंता मत कीजिये हम हैं न. हमने देश के सबसे टॉप वकील को हायर कर लिया है. हम ही जीतेंगे. हमने खुद आपके अभी तक के सुप्रीम कोर्ट के आर्डर को पढ़ा है. अब भले ही जज साहब आपको खुश करने के लिए कोर्ट रूम में मीठी-मीठी बाते बोलते होंगे मगर उनका कलम आपके खिलाफ दिख रहा है. यह सोच का विषय है. हमें इस लड़ाई को जीतने के लिए खुद का आंकलन बहुत जरुरी है.
ऐसा लगता है कि कोर्ट-कोर्ट खेलते-खेलते लोग संघ और संगठन की ताकत को भूल चुके हैं. जहां तक हमें पता है कि संगठन के बल बुते ही बिहार के शिक्षामित्र नियोजित शिक्षक ही नहीं बने बल्कि 1500 रुपया महीना से 15000 रुपया महीना वेतन तक पहुंचे हैं. यह बात याद रखियेगा कि कोई भी मजबूत संगठन किसी जज के फैसले का मोहताज नहीं होता. हमने कमजोर हाथों में कलम को कांपते देखा है. इसके साथ ही कल के जीत लिए शुभकामनाएं.
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